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पंचतत्व में विलीन हुईं शारदा सिन्हा, राजकीय सम्मान के साथ हुआ ‘बिहार कोकिला’ का अंतिम संस्कार

Sharda Sinha Last Rites : लोकप्रिय लोक गायिका शारदा सिन्हा का बृहस्पतिवार को पूरे राजकीय सम्मान के साथ यहां अंतिम संस्कार किया गया। अंतिम संस्कार उनके पुत्र अंशुमान सिन्हा ने किया तथा भावुक माहौल में उन्हें मुखाग्नि दी। पटना के महेंद्रू इलाके में गुलबी घाट श्मशान के बाहर शारदा सिन्हा के अंतिम दर्शन के लिए.

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Sharda Sinha Last Rites : लोकप्रिय लोक गायिका शारदा सिन्हा का बृहस्पतिवार को पूरे राजकीय सम्मान के साथ यहां अंतिम संस्कार किया गया। अंतिम संस्कार उनके पुत्र अंशुमान सिन्हा ने किया तथा भावुक माहौल में उन्हें मुखाग्नि दी। पटना के महेंद्रू इलाके में गुलबी घाट श्मशान के बाहर शारदा सिन्हा के अंतिम दर्शन के लिए सैकड़ों प्रशंसक जमा हुए थे। इस दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे भी मौजूद थे।

राजेंद्र नगर क्षेत्र (कंकड़बाग के पास) स्थित शारदा सिन्हा के आवास से श्मशान घाट तक अंतिम यात्र निकाली गई, जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया। ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित शारदा सिन्हा का मंगलवार रात को निधन हो गया था। सिन्हा एक प्रकार के रक्त कैंसर ‘मल्टीपल मायलोमा’ से ग्रसित थीं। उनका नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुविज्ञान संस्थान (एम्स) में इलाज हो रहा था। वह 72 वर्ष की थीं।

लोकप्रिय लोकगायिका का पार्थिव शरीर बुधवार को विमान के जरिये नई दिल्ली से पटना लाया गया। पटना हवाई अड्डे पर बिहार के कई मंत्री मौजूद थे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनके घर गए और पार्थिव शरीर पर पुष्पचक्र अर्पित किया। केंद्रीय मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा के बृहस्पतिवार शाम को सिन्हा के घर जाने की उम्मीद है। ‘बिहार कोकिला’ के रूप में विख्यात शारदा सिन्हा ने ‘कार्तिक मास इजोरिया’, ‘सूरज भइले बिहान’ सहित कई लोकगीत और छठ पर्व के गीत गाए। उन्होंने ‘तार बिजली’ और ‘बाबुल’ जैसे हिट हिंदी फिल्मी गाने भी गाए।

छठ पर्व के पहले दिन उनका गुजरना भी एक तरह का संयोग है, जिसने लोगों को और भावुक कर दिया। कई लोग इसे विधि का विधान बता रहे हैं। प्रशिक्षित शास्त्रीय गायिका सिन्हा को अपनी गायकी में शास्त्रीय और लोक संगीत के मिश्रण के लिए व्यापक रूप से सम्मानित किया गया। उन्हें अक्सर ‘मिथिला की बेगम अख्तर’ कहा जाता था। वह एक सर्मिपत छठ उपासक थीं और अपने गिरते स्वास्थ्य के बावजूद हर साल त्योहार के अवसर पर एक नया गीत जारी करती थीं। इस साल उन्होंने अपनी मृत्यु से ठीक एक दिन पहले ‘दुखवा मिटाईं छठी मैया’ गीत रिलीज किया था, जो उनकी बीमारी से संघर्ष को दर्शाता है। सिन्हा भोजपुरी, मैथिली और मगही भाषाओं में लोकगीतों का पर्याय थीं।

बिहार के सुपौल में जन्मी सिन्हा ने न केवल अपने गृह राज्य बल्कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में भी प्रसिद्धि हासिल की। विशेष रूप से छठ पूजा और शादियों के दौरान गाए जाने वाले उनके लोक गीत बहुत लोकप्रिय हैं जिनमें ‘छठी मैया आई ना दुअरिया’, ‘द्वार छेकाई’, ‘पटना से’ और ‘कोयल बिन’ शामिल हैं। सिन्हा के पति का कुछ महीने पहले निधन हो गया था। उनके परिवार में एक बेटा और एक बेटी है। सिन्हा ने 1970 के दशक में पटना विश्वविद्यालय में साहित्य का अध्ययन किया था।

उन्होंने दरभंगा के ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय से संगीत में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और साथ ही लोक गायिका के रूप में अपनी पहचान बनाई। फिल्म उद्योग के नामचीन लोगों ने उन्हें सराहा और उनकी कला को उभारा। 1990 के दशक की ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ में सलमान खान को मुख्य भूमिका में लिया गया था। फिल्म में सिन्हा के गीत ‘कहे तोसे सजना’ की काफी प्रशंसा हुई और आज भी इसे प्रेमी जोड़े के दर्द को दर्शाने वाला, सही पृष्ठभूमि का गीत कहा जाता है।

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