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US-China Tariff War 2025 : ड्रैगन के नरम पड़े तेवर… करने लगा रेसिप्रोकल टैरिफ खत्म करने की मांग

इंटरनेशनल डेस्क : 2025 की वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में एक बार फिर अमेरिका और चीन आमने-सामने हैं, और इस बार वजह है टैरिफ वॉर यानी शुल्क युद्ध। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीनी उत्पादों पर भारी शुल्क लगाए जाने के बाद दोनों देशों के बीच आर्थिक तनातनी काफी बढ़ गई थी। लेकिन अब इसमें.

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इंटरनेशनल डेस्क : 2025 की वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में एक बार फिर अमेरिका और चीन आमने-सामने हैं, और इस बार वजह है टैरिफ वॉर यानी शुल्क युद्ध। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीनी उत्पादों पर भारी शुल्क लगाए जाने के बाद दोनों देशों के बीच आर्थिक तनातनी काफी बढ़ गई थी। लेकिन अब इसमें नरमी के संकेत मिलने लगे हैं, खासकर चीन की ओर से। आइए जानते है इस खबर को विस्तार से…

अमेरिका रेसिप्रोकल टैरिफ रद्द करे

आपको बता दें कि 13 अप्रैल 2025 को चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने अमेरिका से रेसिप्रोकल टैरिफ (Mutual Tariffs) को पूरी तरह रद्द करने की अपील की। मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा “हम अमेरिका से आग्रह करते हैं कि वह अपनी गलतियों को सुधारते हुए टैरिफ की गलत प्रथा को समाप्त करे और आपसी सम्मान के मार्ग पर लौट आए।” चीन के इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि वह टकराव नहीं, संवाद और समाधान की दिशा में बढ़ना चाहता है।

ट्रंप ने दी कुछ उत्पादों पर छूट

इससे पहले 12 अप्रैल 2025 को राष्ट्रपति ट्रंप ने स्मार्टफोन, लैपटॉप और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों पर कुछ टैरिफ छूट की घोषणा की थी। इसे चीन ने सकारात्मक संकेत माना है लेकिन वह इसे आंशिक राहत ही मानता है। हालांकि, चीन के मंत्रालय ने ट्रंप को इशारों में नसीहत देते हुए कहा “बाघ के गले में बंधी घंटी को वही खोल सकता है जिसने उसे बांधा है।” इसका मतलब साफ है – चीन यह मानता है कि टैरिफ वॉर की शुरुआत अमेरिका ने की थी, और उसे खत्म करने की जिम्मेदारी भी उसी की है।

शुल्क दरों की जंग

11 अप्रैल 2025 को चीन ने अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ 84% से बढ़ाकर 125% कर दिया। जवाब में अमेरिका ने चीनी वस्तुओं पर 145% तक शुल्क लगा दिया, जो कि अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है। इस भारी शुल्क से दोनों देशों के व्यापार पर गहरा असर पड़ा है और वैश्विक सप्लाई चेन भी प्रभावित हो रही है।

चीन का रुख: विकल्पों की तलाश

चीन ने इस मौके पर अन्य देशों से एकजुट होने की अपील की है ताकि ट्रंप की “आर्थिक धौंस” और एकतरफा नीतियों के खिलाफ मोर्चा बनाया जा सके। साथ ही वह नई व्यापारिक साझेदारियों पर भी काम कर रहा है ताकि अमेरिका पर उसकी निर्भरता कम हो।

नरमी या नई चाल ?

जहाँ एक ओर चीन नरमी और बातचीत की बात कर रहा है, वहीं अमेरिका शर्तों के साथ राहत देने की नीति पर चल रहा है। आने वाले हफ्तों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या दोनों देश कोई समझौता कर पाते हैं या यह टैरिफ वॉर और गहराएगा।

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