नई दिल्ली। अंतरिक्ष की यात्रा से अंतरिक्ष यात्रियों के पेट के अंदरूनी अंगों में ऐसे बदलाव आ सकते हैं जो उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली एवं चयापचय प्रक्रिया पर असर डाल सकते हैं। एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है। अनुसंधानकर्त्ताओं ने कहा कि ये नतीजे यह समझने में मदद करते हैं कि कैसे लंबी अवधि के अंतरिक्ष अभियान अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य पर असर डाल सकते हैं।
कनाडा के मैकगिल विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं की अगुवाई में एक दल ने आनुवंशिक प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल कर तीन महीने की अवधि के लिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर गए चूहे की आंत, मलाशय और यकृत में परिवर्तनों का विषलेषण किया। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा या अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों के अंतरराष्ट्रीय सहयोग से स्थापित आईएसएस पृथ्वी की कक्षा में स्थित एक अंतरिक्ष यान है। यह एक विशिष्ट विज्ञान प्रयोगशाला है और अंतरिक्ष में जाने वाले यात्रियों का ‘घर’ है।
अध्ययन के लेखकों ने आंत के बैक्टीरिया में परिवर्तन पाया जो चूहे के यकृत और आंतों के जीन में बदलावों को दर्शाता है। इससे पता चलता है कि अंतरिक्ष की यात्रा से प्रतिरक्षा प्रणाली पर दबाव पड़ सकता है और चयापचय प्रक्रिया में बदलाव आ सकता है। पत्रिका ‘एनपीजे बायोफिल्म्स एंड माइक्रोबायोम्स’ में प्रकाशित अध्ययन में लेखकों ने लिखा, ‘‘ये अंत: क्रियाएं आंत-यकृत अक्ष पर असर डालने वाले संकेतों, चयापचय प्रणाली और प्रतिरक्षा कारकों में व्यवधान का संकेत देती हैं जो ग्लूकोज और लिपिड (वसा) के विनियमन को प्रेरित करने की संभावना रखते हैं।’’ अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि अध्ययन के नतीजे सुरक्षा उपायों को विकसित करने और चंद्रमा पर दीर्घकालिक उपस्थिति स्थापित करने से लेकर मंगल ग्रह पर मनुष्यों को भेजने तक भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों की सफलता सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं।