नई दिल्ली: गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में गिरावट आने और दहाई अंकों की ऋण वृद्धि से चालू वित्त वर्ष में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का मुनाफा 1.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहने की उम्मीद है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) का वित्त वर्ष 2024-25 की पहली छमाही में कुल शुद्ध लाभ 25 प्रतिशत बढक़र 85,520 करोड़ रुपये हो गया जबकि वित्त वर्ष 2023-24 की पहली छमाही में यह 68,500 करोड़ रुपये थी।
शुद्ध लाभ में बढ़ोतरी का सिलसिला दूसरी छमाही में भी जारी रहने की संभावना है। सार्वजनिक बैंकों ने परिसंपत्ति गुणवत्ता, ऋण वृद्धि, स्वस्थ पूंजी पर्याप्तता अनुपात और परिसंपत्तियों पर बढ़ते रिटर्न के दम पर 2023-24 में 1.41 लाख करोड़ रुपये का अपना अब तक का सबसे अधिक कुल शुद्ध लाभ दर्ज किया।
सार्वजनिक बैंकों के सकल एनपीए अनुपात में उल्लेखनीय सुधार देखा गया है, जो मार्च 2018 में 14.58 प्रतिशत के उच्च स्तर से सुधरकर सितंबर 2024 में 3.12 प्रतिशत पर आ गया। एनपीए में आई यह कमी बैंकिंग प्रणाली के भीतर तनाव को दूर करने के उद्देशय़ से लक्षित कदमों की सफलता को दर्शाती है।
पीएसबी की मजबूती का एक अन्य संकेतक उनका पूंजी से जोखिम भारित संपत्ति अनुपात (सीआरएआर) है जो मार्च 2015 के 11.45 प्रतिशत से बढक़र सितंबर 2024 में 15.43 प्रतिशत हो गया। यह सुधार क्षेत्र की स्थिरता और मजबूती को उजागर करने के साथ पीएसबी को आíथक वृद्धि का बेहतर समर्थन करने की स्थिति में भी रखता है।
सार्वजनिक बैंकों के सीआरएआर का यह स्तर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की 11.5 प्रतिशत की न्यूनतम शर्त से कहीं अधिक है, जो इन संस्थानों की मजबूत वित्तीय बैंकिंग सेहत को रेखांकित करता है। इसका नतीजा यह निकला है कि भारत 2014-15 में घाटे की स्थिति से उबरकर दोहरे बहीखाता लाभ के करीब है।
आरबीआई ने 2015 में परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा (एक्यूआर) शुरू कर एनपीए की पारदर्शी पहचान को अनिवार्य बनाया था। इसने पहले से पुनर्गठित ऋणों को भी एनपीए के रूप में नए सिरे से वर्गीकृत किया, जिससे रिपोर्ट किए गए एनपीए में तेज वृद्धि हुई। इस दौरान फंसे के लिए प्रावधान की बढ़ती जरूरतों ने बैंकों के वित्तीय मापदंडों को प्रभावित किया।
इससे उनकी उधार देने और अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों को समर्थन देने की क्षमता सीमित हो गई। हालांकि पहचान, पूंजी डाले जाने, समाधान और सुधार के दम पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हालत सुधरती चली गई। पिछले तीन वर्षों में इन बैंकों ने शेयरधारकों के रिटर्न में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और कुल 61,964 करोड़ रुपये का लाभांश दिया है।
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की फरवरी में होने वाली अगली बैठक में अपेक्षित दर कटौती के साथ ऋण मांग में और वृद्धि होगी। रेटिंग एजेंसी इक्रा के उपाध्यक्ष सचिन सचदेवा ने कहा, हमें उम्मीद है कि यदि दरों में कटौती आगामी एमपीसी बैठक से शुरू होती है तो भी जमा दरों में कुछ समय के लिए कमी आएगी, जिससे निकट-से-मध्यम अवधि में माíजन घटेगा। हम बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता पर भी सतर्क हैं तथा वित्त वर्ष 2025-26 में ऋण लागत में वृद्धि की उम्मीद है।