शिव-शक्ति के रूप में विख्यात चामुण्डा नन्दिकेश्वर धाम

सिद्ध शक्तिपीठ चामुंडा नन्दीकेश्वर धाम प्राचीनकाल से ही योगियों, साधकों के लिए एकांत, शांत एवं प्राकृतिक शोभा से युक्त स्थान है। शिव और शक्ति का पावन स्थल चामुंडा नन्दीकेश्वर धाम चामुण्डा के रूप में मंत्र विद्या और सिद्धि का वरदायनी क्षेत्र माना गया है, जहां भगवान आशुतोष शिवशंकर-मृत्यु, विनाश और शवहारी विसर्जन रूप लिए, साक्षात.

सिद्ध शक्तिपीठ चामुंडा नन्दीकेश्वर धाम प्राचीनकाल से ही योगियों, साधकों के लिए एकांत, शांत एवं प्राकृतिक शोभा से युक्त स्थान है। शिव और शक्ति का पावन स्थल चामुंडा नन्दीकेश्वर धाम चामुण्डा के रूप में मंत्र विद्या और सिद्धि का वरदायनी क्षेत्र माना गया है, जहां भगवान आशुतोष शिवशंकर-मृत्यु, विनाश और शवहारी विसर्जन रूप लिए, साक्षात मां चामुण्डा के साथ बैठे हैं। यहां भक्तजन शिव मंत्रों से पूजन, दान आदि करते हैं। बाण गंगा में स्नान करके शतचंडी पाठ सुनना तथा सुनाना श्रेष्ठ है।

पौराणिक कथा
श्री चामुण्डा का पौराणिक इतिहास दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय में स्पष्ट हुआ है। यही वह स्थान है जहां चण्ड-मुंड राक्षस, देवी से यद्ध करने आए और काली रूप धारण कर देवी ने उनका वध किया। अम्बा ने प्रसन्न होकर कालिका को वर दिया कि तुमने चण्ड-मुंड का वध किया है अत: संसार में तुम चामुण्डा नाम से विख्यात एवं पूजित होगी।

कथा श्री चामुण्डा धाम
सतयुग की बात है कि योल में एक चन्द्रभान नामक राजा के राज्य में लोगों ने फरियाद की कि हे महाराज, आप तो सत्यवादी हैं। हम पर राक्षस लोग बहुत अत्याचार कर रहे हैं। वे हर रोज कई आदमियों को खत्म कर देते हैं। ऐसा दु:ख देख उन्होंने अपने गुरु जी को याद किया तथा बचाव की प्रार्थना की। नदी के इस पार बाण गंगा के किनारे उनके गुरु जी रहते थे। वह गुरु के पास आए तो गुरु जी से अपने राज्य की शांति के लिए वचन मांगा। गुरु जी ने कहा कि कैलाश पर्वत पर शिव और पार्वती रहते हैं।

जाओ विद्वान बिठा कर चामुण्डा मां का जाप करो, मां को प्रसन्न करो। उन्होंने ऐसा ही किया। जाप से चामुण्डा मां और पार्वती जी प्रसन्न हो गई। उन्होंने अभीष्ट वर देकर राजा से कहा, ‘तुम जाओ, आज के बाद आपके राज्य में कोई नुक्सान नहीं होगा। परन्तु शर्त यह है कि मुझे एक बलि और भोग-प्रसाद रोज देना पड़ेगा। अंतत: राजा ने बात मान ली। लाख-दो लाख घर में से कहीं एक घर की बारी आती थी। दरबार से रोज एक थाली और एक आदमी, जिसकी माता बलि लेती थी, वह जाता था परन्तु जिन्दा वापिस नहीं आता था। एक पहाड़ी पर मां चामुण्डा का निवास था। ईश्वर की माया कि उसी राज्य में एक ब्राह्मण और ब्राह्मणी रहते थे। वे दोनों शंकर भगवान के भक्त थे।

शंकर भगवान ने उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर बुढ़ापे में एक बालक का साथ उन्हें दिया। अब एक दिन उस परिवार की बारी आ गई। ब्राह्मण और ब्राह्मणी शंकर जी से प्रार्थना करने लगे कि हमें यह लड़का आपने ही आशीर्वाद में दिया था। फिर आज यह हमसे क्यों छीना जा रहा है। बलिदान के दिन रुद्र की बूढ़ी माता ने अनेक प्रकार के भोजन बनाकर बालक को खिलाए परन्तु भोग ले जाने को नहीं बोल पाई। इधर रुद्रद्रत्त राजा के आदेश का पालन करने के लिए, उस विदाई यात्रा पर करुण स्वर से रोती और प्रेम भरे आंसू टपकाती हुई माता से मिलने लगा।

उसकी मां भगवान शंकर के चरणों में ध्यान कर रोती हुई बार-बार कहने लगी कि ‘हे प्रभु! आपने रुद्र दत्त हमें दिया ही क्यों था?’ ब्राह्मण और ब्राह्मणी के दु:ख को देखकर शंकर भगवान जी साधू के वेश में आए और उनसे पूछने लगे कि आप इतने दु:खी क्यों हैं। तब उन्होंने बताया कि शंकर भगवान ने एक लड़का दिया था और प्रात: चामुण्डा माता ने उसकी बलि ले लेनी है। तब साधु (शंकर भगवान) ने कहा कि कल हम आपके लड़के के साथ जाएंगे। प्रात: होते ही राज-दरबार से राजदूत आ गए। उधर साधु रूप में शंकर भगवान भी आ गए। वह लड़के को लेकर चामुण्डा माता के दरबार में चलने लगे। रास्ते में शंकर भगवान ने राजदूतों को वापिस भेज दिया और लड़के को वहां लेकर आ गए, जिस स्थान पर शंकर भगवान का मंदिर है।

वे साधु एक ओर बैठ गए और लड़के को भी आंखें बंद करके बैठने को कहा। तब चामुण्डा माता ने रात को राजा को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि आज मुझे बलि प्राप्त नहीं हुई है अत: मैं तुम्हारे राज्य का सर्वनाश कर दूंगी। तब राजा ने सुबह उठते ही राज्य में ढिंडोरा पिटवा दिया। सभी ओर लड़के को ढ़ूढ़ने की कोशिश होने लगी। सिपाही ढूंढ़ते उस मंदिर में जा पहुंचे। वजीर ने साधु से कहा कि तुम्हें इस लड़के को यहां लाने के अपराध में राज-दरबार से दण्ड दिया जाएगा। साधु ने वजीर से कहा कि जाओ अपने राजा से कह दो कि यदि उसमें इतनी शक्ति है तो लड़के को यहां से ले जाए।

वजीर ने यह बात अपने राजा को बताई। तब राजा ने मां से प्रार्थना कि और उन्हें सारी बात कह सुनाई। यह बात सुन मां क्रोध में आ गई और विकराल रूप धारण कर लिया। उधर क्रोध में आकर माता ने पहाड़ से तीन चट्टानें फैंकीं। दो चट्टानें तो इधरउधर चली गई, परन्तु एक चट्टान उनके ऊपर ही खड़ी रही। तब माता ने साधु से पूछा कि आप कौन हैं? और क्यों इस बालक को मेरे पास आने नहीं देते? तब भगवान ने अपने दिव्य दर्शन देकर कहा कि निरअपराधों की बलि लेना ठीक नहीं। तुम ऊपर मंदिर में विराजमान हो जाओ, मेरा स्थान यहां नीचे रहेगा। उन्होंने लड़के को वापिस भेज दिया।

मार्ग परिचय
चामुण्डा धाम तक रेल तथा सड़क दोनों मार्गों से पहुंचा जा सकता है। पठानकोट से पपरोला जाने वाले रेल मार्ग में स्टेशन से मंदिर 4 किलोमीटर है। पठानकोट, धर्मशाला एवं कांगड़ा से चामुण्डा सड़क मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है।

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