गणपति बप्पा मोरिया…

बुद्धि के अधिदेवता विघ्ननाशक श्री गणेश की महत्ता इस बात से पता चलती है कि जब भी कोई पूजा-पाठ, विधि-विधान हो, हर वैदिक मांगलिक कार्यों को प्रारंभ करते समय सर्वप्रथम गणपति का ही सुमिरन किया जाता है। गणेश शब्द ‘गण’ और ‘ईश’ से मिलकर बना है। ‘गण’ का अर्थ होती है समूह और ‘ईश’ का.

बुद्धि के अधिदेवता विघ्ननाशक श्री गणेश की महत्ता इस बात से पता चलती है कि जब भी कोई पूजा-पाठ, विधि-विधान हो, हर वैदिक मांगलिक कार्यों को प्रारंभ करते समय सर्वप्रथम गणपति का ही सुमिरन किया जाता है। गणेश शब्द ‘गण’ और ‘ईश’ से मिलकर बना है। ‘गण’ का अर्थ होती है समूह और ‘ईश’ का अर्थ है स्वामी। यानि समूह (देवताओं का स्वामी) जो परमेश्वर के अतिरिक्त कोई अन्य नहीं हो सकता।

भगवान शिव-पार्वती के परिवार के सदस्य होने के कारण उन्हें असीम शक्तियां प्राप्त हैं। गणेश जी की आराधना पूरे भारत वर्ष में श्रद्धाभाव से की जाती है। गणेशोत्सव व विसर्जन भी हर वर्ष धूमधाम से मनाया जाता है। कुछेक दशक पहले गणेशोत्सव अर्थात् गणेश जी के जन्मदिवस को महाराष्ट्र में ही विशेष श्रद्धा एवं हर्षोल्लास से मनाया जाता था। परन्तु अब वर्तमान में उत्तर भारतीय राज्यों में भी इस उत्सव की अलग ही छठा उभरकर आती है।

छत्रपति शिवाजी व गणेशोत्सव
मराठा वीर छत्रपति शिवाजी मराठा के बारे में विख्यात था कि वह श्रीगणेशजी के अनन्य भक्त थे। उनके समय से ही इस उत्सव को पूरे मराठा वर्ग के अतिरिक्त अन्य सनातन धर्म के अनुयाई भी इस पर्व को आकर्षक ढंग से मनाते थे। इस दिन की पूजा-अर्चना के बाद गणेश जी की मूर्ति को गाजे-बाजे के साथ नदी या सागर में विसर्जित कर दिया जाता था। मुगलों से टक्कर लेने के लिए शिवाजी का मुख्य उद्देश्य था कि हिन्दू संस्कृति के लोग अपनी संस्कृति से जुड़े रहें और संगठित भी रहें। शिवाजी मराठा के उपरांत पेशवाओं ने भी इस परम्परा को आगे बढ़ाया। धीरे-धीरे वह श्री गणेश को अपना ईष्ट देव मानने लगे।

गणेशोत्सव व स्वाधीनता संग्राम
गणेशोत्सव की लोकप्रियता एवं संगठन क्षमता देख अंग्रेज शासकों ने इसे सार्वजनिक रूप से मनाने पर रोक लगा दी थी। लेकिन लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इस पर्व को स्वाधीनता संग्राम का आधार बनाया। उन्हीं के प्रयासों से इस उत्सव को सार्वजनिक रूप से मनाने की कवायद प्रारंभ हो गई।

श्रीगणेश जी की मूर्ति विसर्जन तैयारी
इस महोत्सव की तैयारी हेतु श्री गणेश जी की प्रतिमाओं का निर्माण महीनों पहले ही प्रारंभ हो जाता है। मूर्ति का आकार और श्रीगणेश के भक्तों की श्रद्धा इसे नहीं मापा जा सकता। गणेश चतुर्थी पर इनकी प्रतिमा स्थापित की जाती है इसके उपरांत गणेश जी की पूजा-अर्चना प्रारंभ हो जाती है। मीठे के शौकीन गणेश जी की पूजा में पंचामृत, फल, मिठाई (विशेष रूप से लड्डू) का भोग लगाया जाता है। गणेश जी की यह पूजा 10 दिन तक निरंतर चलती रहती है।

अनंत-चतुर्दशी के दिन श्री गणेश जी की प्रतिमाओं का विसर्जन होता है। कुछ भक्तजन जो पूजा इस दिन तक करने में समर्थ नहीं हो पाते वह मूर्तियों की स्थापना के बाद तीसरे, पांचवें व सातवें रोज भी विसर्जित कर सकते हैं। मूर्ति विसर्जन से पहले 10 दिन तक मूर्ति की प्रतिदिन दो बार पूजा की जाती है। विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट सात्विक व्यंजन प्रसाद रूप में श्री गणेश भक्तों को वितरित किए जाते हैं। महाराष्ट्र के लोकप्रिय नृत्य लावणी के अतिरिक्त गुजरात के डांडिया, भांगड़ा व गरबा का खुमार जनमानस के सिर पर चढ़ बोलता है।

अंनतचतुर्दशी और विसर्जन
दस दिन की पूजा के उपरांत अनंत चतुर्दशी वाले दिन मूर्तियां विसर्जन हेतु पवित्र नदियों की और विशाल शोभा यात्रा रूप में रवाना होती हैं। विशाल जनसमूह श्रीगणेश जी के जयकारो

गणपति बप्पा मोरिया
घीमा लड्डू चोरिया
पुडचा वरसी लौकरिया
बप्पा मोरिया, बप्पा मोरिया रे।।

से गुंजायमान कर देते हैं। विसर्जन से पूर्व पांच विशेष आरतियां होती हैं। हर एक आरती के बाद विसर्जन की जगह नावों पर चक्कर लगते हैं। देश के अन्य भागों में भी लोग एकत्र होकर अन्य साथियों के साथ नजदीकी नदियों में भी श्री गणेश जी की मूर्तियां विर्सजन करते हैं। मूर्तियों को पावन नदियों में विसर्जन के उपरांत नदी की थोड़ी सी मिट्टी वापस घर लेकर आते हैं। उसे अपने घरों में थोड़ी- थोड़ी छिड़क कर उसे पवित्र बनाते हैं।

मूर्ति विसर्जन का संदेश
सदियों से मूर्ति विसर्जन की परंपरा हमें एक विशेष संदेश भी देती है। गणेश जी की मूर्ति विसर्जन के उपरांत शीघ्रता के साथ नदी के जल में घुल जाती है और नदी की ही मिट्टी बन जाती है जिससे हमें संदेश मिलता है कि शरीर नाशवान है, एक जीवन-चक्र पूरा कर उसे भी मिट्टी बन जाना होता है। मूर्ति की तरह बिछुड़ने के लिए तत्पर रहना चाहिए। त्याग की भावना से ही नई आशा का संचार होता है।

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