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हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 27 दिसंबर

सूही महला ४ ॥ हरि हरि नामु भजिओ पुरखोतमु सभि बिनसे दालद दलघा ॥ भउ जनम मरणा मेटिओ गुर सबदी हरि असथिरु सेवि सुखि समघा ॥१॥ मेरे मन भजु राम नाम अति पिरघा ॥ मै मनु तनु अरपि धरिओ गुर आगै सिरु वेचि लीओ मुलि महघा ॥१॥ रहाउ ॥ नरपति राजे रंग रस माणहि बिनु.

सूही महला ४ ॥ हरि हरि नामु भजिओ पुरखोतमु सभि बिनसे दालद दलघा ॥ भउ जनम मरणा मेटिओ गुर सबदी हरि असथिरु सेवि सुखि समघा ॥१॥ मेरे मन भजु राम नाम अति पिरघा ॥ मै मनु तनु अरपि धरिओ गुर आगै सिरु वेचि लीओ मुलि महघा ॥१॥ रहाउ ॥ नरपति राजे रंग रस माणहि बिनु नावै पकड़ि खड़े सभि कलघा ॥ धरम राइ सिरि डंडु लगाना फिरि पछुताने हथ फलघा ॥२॥ हरि राखु राखु जन किरम तुमारे सरणागति पुरख प्रतिपलघा ॥ दरसनु संत देहु सुखु पावै प्रभ लोच पूरि जनु तुमघा ॥३॥ तुम समरथ पुरख वडे प्रभ सुआमी मो कउ कीजै दानु हरि निमघा ॥ जन नानक नामु मिलै सुखु पावै हम नाम विटहु सद घुमघा ॥४॥२॥

हे भाई! जिस मनुख ने परमात्मा का नाम सुमिरन किया है, हरी उत्तम पुरख को जपा है, उस के सरे दरिद्र, दलों के दल नास हो गये हैं। गुरु के शब्द में जुड़ के उस मनुख ने जनम मरण का डर भी ख़तम कर लिया है। सदा स्थिर रहने वाले परमात्मा की सेवा-भगती कर के वह आनंद में लीन हो गया है।१। हे मेरे मन! सदा परमात्मा का अति प्यारा नाम सुमिरा (सुमिरन किया) कर। हे भाई! मैने अपना मन अपना शरीर भेट कर के गुरु के आगे रख दिया है। मैंने अपना सिर मंहगे भाव बेच दिया है (मैंने सिर के बदले कीमती हरी नाम ले लिया है)।१।रहाउ। हे भाई दुनिया के राजे महाराजे माया के रंग रस मानते रहते हैं, नाम से दूर होकर रहते हैं , उन सब को आत्मिक मौत पकड़कर आगे लगा लेती है। उनको उनके कर्मों का फल मिलता है । जब उनके सिर पर परमात्मा का डंडा लगता है। तब पछताते हैं। हे हरि हे पालनहार सर्व व्यापक हम तेरे पैदा किए निमाने जीव हैं, हम तेरी शरण आए हैं , तू आप अपने सेवकों की रक्षा करो। हे प्रभु मैं तेरा दास हूं दास की इच्छा पूरी कर इस दास को, संतों का, संत जनों दर्शन करवा दो ताकि यह दास आत्मिक आनंद प्राप्त कर सकें।हे प्रभु, हे सबसे बड़े मालिक तू सारी ताकतों का मालिक प्रभु है मुझे एक पल के लिए ही अपने नाम का दान दे दे। गुरू नानक जी कहते हैं, हे दास नानक (कह) जिसको प्रभु का नाम प्राप्त होता है वह आनंद मनाता है। मैं सदा हरी नाम से बलिहार हूं।

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