धर्म : सोरठि महला ५ ॥मिरतक कउ पाइओ तनि सासा बिछुरत आनि मिलाइआ ॥ पसू परेत मुगध भए स्रोते हरि नामा मुखि गाइआ ॥१॥ पूरे गुर की देखु वडाई ॥ ता की कीमति कहणु न जाई ॥ रहाउ ॥ दूख सोग का ढाहिओ डेरा अनद मंगल बिसरामा ॥ मन बांछत फल मिले अचिंता पूरन होए कामा ॥२॥ ईहा सुखु आगै मुख ऊजल मिटि गए आवण जाणे ॥ निरभउ भए हिरदै नामु वसिआ अपुने सतिगुर कै मनि भाणे ॥३॥ ऊठत बैठत हरि गुण गावै दूखु दरदु भ्रमु भागा ॥ कहु नानक ता के पूर करमा जा का गुर चरनी मनु लागा ॥४॥१०॥२१॥
अर्थ: हे भाई! पूरे गुरू की आत्मिक उच्चता बड़ी ही आश्चर्यजनक है, उसका मूल्य नहीं बताया जा सकता। रहाउ।हे भाई! (गुरू आत्मिक तौर पर) मरे हुए मनुष्य के शरीर में नाम-प्राण डाल देता है, (प्रभू से) विछुड़े हुए मनुष्य को ला के (प्रभू के साथ) मिला देता है। पशु (स्वभाव लोग) मूर्ख मनुष्य (गुरू की कृपा से परमात्मा का नाम) सुनने वाले बन जाते हैं, परमात्मा का नाम मुँह से गाने लग जाते हैं।1।(हे भाई! जो मनुष्य गुरू की शरण आ पड़ता है, गुरू उसको नाम रूपी प्राण दे के उसके अंदर से) दुखों का ग़मों का डेरा गिरा देता है उसके अंदर आनंद खुशियों का ठिकाना बना देता है।
उस मनुष्य को अचानक मन-इच्छित फल मिल जाते हैं उसके सारे काम सिरे चढ़ जाते हैं।2।हे भाई! जो मनुष्य अपने गुरू के मन को भा जाते हैं, उन्हें इस लोक में सुख प्राप्त रहता है, परलोक में भी वे सुर्खरू हो जाते हैं, उनके जनम-मरण के चक्कर समाप्त हो जाते हैं, उन्हें कोई डर छू नहीं सकता (क्योंकि गुरू की कृपा से) उनके हृदय में परमात्मा का नाम आ बसता है।3।हे नानक! कह– जिस मनुष्य का मन गुरू के चरणों में जुड़ा रहता है, उसके सारे काम सफल हो जाते हैं, वह मनुष्य उठता-बैठता हर वक्त परमात्मा की सिफत सालाह के गीत गाता रहता है, उसके अंदर से हरेक दुख पीड़ा भटकना खत्म हो जाती है।4।10।21।