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हुकनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 26 जून 2024

धर्म : रामकली महला ५ ॥ राखनहार दइआल ॥ कोटि भव खंडे निमख खिआल ॥ सगल अराधहि जंत ॥ मिलीऐ प्रभ गुर मिलि मंत ॥१॥ जीअन को दाता मेरा प्रभु ॥ पूरन परमेसुर सुआमी घटि घटि राता मेरा प्रभु ॥१॥ रहाउ ॥ ता की गही मन ओट ॥ बंधन ते होई छोट ॥ हिरदै जपि परमानंद ॥ मन माहि भए अनंद ॥२॥

अर्थ :- हे भाई! परमात्मा सब जीवों की रखा करने के समरथ है, दया का सोमा है। अगर अख फरकण जितने समे के लिए भी उसका ध्यान धरऐ, तो करोड़ों जन्म के गेड़ काटे जाते हैं। सारे जीव उसे का आराधन करते हैं। हे भाई! गुरु को मिलके, गुरु का उपदेश लेके उस भगवान को मिल सकते है।1। हे भाई! मेरा भगवान सब जीआँ को दातें देने वाला है। वह मेरा स्वामी परमेसर भगवान सबमें व्यापक है, हरेक शरीर में रमिआ हुआ है।1।रहाउ। हे मन! जिस मनुख ने उस परमात्मा का सहारा ले लिया, (माया के मोह के) बंधनो से उसकी खलासी हो गई। सबसे ऊँचे सुख के स्वामी भगवान को हृदय में जपके मन में खुशी ही खुशी बन जाती हैं।2।

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