जानिए पुष्टिमार्गीय वैष्णवो की काशी नाथद्वारा के बारे में

वल्लभ संप्रदाय का यह प्रमुख तीर्थ उदयपुर के उत्तर में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 पर 48 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जो जोधपुर, अजमेर, उदयपुर आदि से बस तथा रेल सेवा द्वारा सीधा जुड़ा हुआ है। नाथद्वारा अपने विशिष्ट दर्शनों, पूजा-पद्धतियों, झांकियों, पर्व-त्यौहारों पर होने वाले उत्सवों के लिए विश्व-प्रसिद्ध है। उदयपुर गाइड बुक.

वल्लभ संप्रदाय का यह प्रमुख तीर्थ उदयपुर के उत्तर में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 पर 48 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जो जोधपुर, अजमेर, उदयपुर आदि से बस तथा रेल सेवा द्वारा सीधा जुड़ा हुआ है। नाथद्वारा अपने विशिष्ट दर्शनों, पूजा-पद्धतियों, झांकियों, पर्व-त्यौहारों पर होने वाले उत्सवों के लिए विश्व-प्रसिद्ध है। उदयपुर गाइड बुक के लेखक श्री राजेश कुमार गुप्ता के अनुसार नाथद्वारा स्थित मुख्य मन्दिर में भगवान श्रीनाथ जी का जो विग्रह है वह 12वीं शताब्दी का माना जाता है। सन 1595 में महाप्रभु वल्लभाचार्य ने मथुरा के एक छोटे से मन्दिर में इसे प्रतिष्ठित किया था।

17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में औरंगजेब के आक्रमण से भयभीत होकर तत्कालीन तिलकायतजी ने अनेकों राजा- महाराजाओं से संपर्क किया परन्तु किसी ने भी मुगल सम्राट औरंगजेब को अप्रसन्न करने की हिम्मत नहीं की। मेवाड़ के महाराणा राज सिंह ने तत्कालीन परिस्थितियों को मद्देनजर रखते वल्लभाचार्य की प्रार्थना स्वीकार कर नाथद्वारा में भगवान श्रीनाथ जी के विग्रह को प्रतिष्ठित करवाया। नाथद्वारा का मुख्य मन्दिर लम्बे-चौड़े भू-भाग में स्थित है। मंदिर तो पूर्ण रूपेण पक्का बना हुआ है लेकिन मुख्य गर्भ-गृह की छत आज भी खपरैल की बनी है।

कारण यह है कि पुष्टि मार्ग में श्रीकृष्ण की बाल- लीलाओं के प्रति भक्ति का मुख्य प्रतिपाद्य रहता है। भगवान श्रीकृष्ण की समस्त बाल लीलाएं ब्रजप्रदेश में हुई थी। ब्रज प्रदेश में भगवान श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं का मुख्यालय नन्दालय था जो कि उस समय की स्थिति के अनुरूप खपरैल की छत से ही सुसज्जित था तथा प्राय: गोकुल, वृंदावन इत्यादि क्षेत्रों में इसी तरह की छतें हुआ करती थी। यही कारण है कि नाथद्वारा में भगवान श्रीनाथ जी के मुख्य मंदिर की छत नन्दालय की अनुकृति में खपरैल से ही निर्मित है हालांकि यहां देवालय का भाव है।

वल्लभ संप्रदाय में परंपरानुसार मुख्य पीठ के अलावा अन्य उपपीठों के मंदिरों पर ध्वजा नहीं लगायी जाती मगर नाथद्वारा मुख्य स्थल है, इस कारण से यहां सप्त ध्वजाएं हैं। साथ ही सुदर्शन चक्र एवं कलश भी मंदिर की शोभा में श्रीवृद्धि किए हुए हैं। मंदिर के पट खुलने के पश्चात् दर्शनार्थी वाया हाथीपोल होकर रत्न चौक पहुंचते हैं। रत्न चौक से फिर डोल-तिवारी पहुंचकर भक्त जन श्रीनाथ जी के विग्रह के दर्शन कर अपने को कृतकृत्य मानते हैं। दूसरे रास्ते से वाया मोतीमहल होकर श्री नवनीत प्रियाजी तथा वाया श्री कृष्ण भण्डार से गोवर्धन चौक पहुंचा जाता है।

तीसरा रास्ता परिक्रमा के मार्ग में प्रीतम पोल होता हुआ धोली पटियां जाता है। प्रीतम पोल की सीध में बने दरवाजे के खुलने से सीधे कमल चौक भी पहुंचा जा सकता है। मंदिर के सुप्रबन्धन से जुड़े मुख्य कार्यकर्त्ताओं, सेवकों तथा पदाधिकारियों सहित दर्शनार्थियों का यह भी प्रयास रहता है कि सुदर्शन-चक्र तथा ध्वजाओ के ऊपर पक्षी आदि आकर न बैठें। श्रीनाथ जी के मुख्य मंदिर के अलावा सुदर्शन चक्र , ध्वजाएं, धौली पटियां, कमल चौक, रतन चौक, डोल तिवारी, अनार चौक, षष्ठी कोठा, मणि प्रकोष्ठ, नवनीत प्रियाजी का मंदिर तथा उद्यान, श्रीमद बल्लभाचार्य की बैठक, आंतरिक एवं बाह्य परिक्र मा आदि श्रद्धालुओं के लिये आकर्षण हैं।

उक्त श्रद्धा केंद्रों के अलावा चारों ओर से विशाल पक्के परकोटे से आवेष्ठित इस मन्दिर परिसर भू- भाग में तेल, घी के कुंए, केसर पीसने हेतु सोने, चांदी की चक्कियां, दूधघर, पानघर, मिश्रीघर, पेड़ाघर, पातलघर, शाकघर, फूलघर, गुलाबघर, दर्जीघर, रसोईघर, गहनाघर, खर्च भण्डार, श्रीकृष्ण भण्डार, परसादी भण्डार, रथशाला, अश्वशाला, गजशाला आदि स्थानों सहित अन्य मन्दिर भी दर्शनीय स्थल हैं। इस विशाल सुप्रसिद्ध मंदिर की देखरेख प्राचीन परंपरानुसार वंश परंपरागत तिलकायत जी के मार्ग-दर्शन में सरकारी सहयोग से सम्पन्न की जाती हैं।

राज्य सरकार ने मंदिर को अपने सरकारी नियंत्रण में कर रखा है मगर तिलकायतजी के सान्निध्य में सहयोगात्मक रूख से ही समस्त कार्य निष्पादित किए जाते हैं। मन्दिर की प्राचीन परंपराओं, पद्धतियों तथा मर्यादा आदि को पूर्व कालानुसार सरकार द्वारा यथावत रखा हुआ है। यह मंदिर आर्थिक रूप से वैभव सम्पदायुक्त है। मंदिर की चल-अचल संपत्ति के रूप में 829 दुकानें तथा मकान एवं 13,448 बीघा जमीन खेती तथा गोचर भूमि के रूप में मंदिर के आधीन है। राज्य सरकार से प्रतिवर्ष मैन्यूरी के रूप में 3 लाख रुपए मंदिर प्रबंधन को दिए जाते हैं।

प्रतिवर्ष लाखों रूपयों का चढ़ावा विभिन्न तरीकों से मंदिर को प्राप्त होता है। मुम्बई, कोटा, सूरज, अहमदाबाद, जामनगर, पोरबन्दर, जूनागढ़, कोलकाता, काशी, मथुरा, उदयपुर इत्यादि के श्रीनाथ भण्डार भी इस मंदिर के मुख्य आय स्रोत में से हैं। पुष्टिमार्गीय वैष्णव परंपरा के अनुसार श्रीनाथ जी के आठ प्रकार के दर्शनों का प्रारूप व्यवस्थित क्र मबद्ध है। मंगला, श्रृंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, भोग, संध्या-आरती दर्शन एवं शयन। ग्रीष्म तथा शरद ऋतुओं के अनुसार उक्त सभी प्रकार के दर्शनों के समय में परिवर्तन होता है।

श्रीनाथद्वारा के मंदिर में सनातन मत के सभी पर्व, त्यौहार धूमधाम से मनाये जाते हैं जिनका स्वरूप भिन्न-भिन्न रूप लिए होता है।। कार्तिक मास में दीपावली पर्व के अवसर पर गोबर के गोवर्धन जी बनाकर उन्हें गोवर्धन चौक में स्थापित किया जाता है। पश्चात् उनकी पूजा इत्यादि की जाती है। पूजन के समय वहां एकत्रित की हुई गायों में से दो प्रमुख गायों द्वारा उन्हें गुदाया जाता है। तत्पश्चात् गायों को क्रीड़ा कराते हुए ग्वाल, मंदिर मार्ग की ओर ले जाते हैं। इस दृश्य को देखने हेतु नगर के सभी मकानों की छतों पर भक्तजनों का भारी जन-सैलाब उमड़ता है।

125 मण के कच्चे, पक्के चावलों को ढेर उस दिन डोल तिवारी में रख दिया जाता है। पक्के चावलों की गर्मी से सम्पृक्त हो कच्चे चावल भी पकने की स्थिति में हो जाते हैं। रात में श्री नवनीत प्रिया जी तथा श्री विठ्ठलनाथजी के विग्रहों को लाकर श्रीनाथ जी की गोद में बैठा दिया जाता है। पश्चात् दर्शनार्थ पट खोल दिए जाते हैं। पट खुलते ही भारत का अनूठा पर्वोत्सव चावलों की लूट का कार्यक्रम आरंभ हो जाता है। कार्तिक मास की सर्दी में शरीर पर एकमात्र लंगोटी, घुटनों तक की धोती पहने हुए, गले में झोली लटकाए भीलों का समूह चावलों को लूटने में जुट जाता है।

प्रत्येक भील की पत्नी लाल दरवाजे के समीप खड़ी हो, अपने पति द्वारा चावल लूट कर लाए जाने की प्रतीक्षा करती है। लूट का क्रम चलता रहता है। परिस्थितिवश अगर कोई भील चावल लूटने में असफल रहता है तो उसे अन्य भील अपने में से लूटे हुए चावल दे देता है। भीलों द्वारा चावल लूट का दृश्य अत्यन्त मन-लुभावन होता है। यह कार्यक्रम परंपरा का हिस्सा है। भील लुटे हुए चावलों को श्रीनाथ जी का महाप्रसाद मानते हैं।

रात्रि में चावल लेकर वे अपने गांव चले जाते हैं। नाथद्वारा तीर्थ के मुख्य मंदिर में निर्मित शुद्ध स्वादिष्ट प्रसाद भक्तजन अपने-अपने घर ले जाकर उसे भाव से रखते हैं विशेषत: पाक-शास्त्रियों की देखरेख में बना मुख्य प्रसाद कई महीनों तक रखने पर भी खराब नहीं होता है। नाथद्वारा हिंदुओं के प्रमुख तीर्थ-स्थलों में से एक है। प्रतिदिन हजारों भक्तजनों के आने-जाने का यहां क्रम बना रहता है। यहां ठहरने की उचित व्यवस्था के साथ, खाने-पीने की तनिक भी असुविधा नहीं है।

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