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मातृ नवमी आज, माता पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए करें ये कुछ काम और जानिए इसका महत्व

आज पितृ पक्ष की नवमी तिथि है। इसे मातृ नवमी या मातृ नवमी श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता हैं। मान्यताओं के अनुसार आज के दिन माता पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध आदि करते हैं। आज के दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है, जिनका निधन किसी भी मा​ह की नवमी तिथि को हुआ हो। पितृ पक्ष की नवमी तिथि के दिन माता पितरों को प्रसन्न करते हैं ताकि उनका आशीर्वाद प्राप्त हो और दोष दूर हों। आइए जानते है ​मातृ नवमी का श्राद्ध समय और महत्व :

मातृ नवमी श्राद्ध 2023 की सही तिथि क्या है?
वैदिक पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को मातृ नवमी मनाई जाती है. इस साल आश्विन कृष्ण नवमी तिथि की शुरूआत आज सुबह 08 बजकर 08 मिनट से है और यह तिथि कल सुबह 10 बजकर 12 मिनट तक मान्य है. ऐसे में मातृ नवमी श्राद्ध आज है.

मातृ नवमी 2023 श्राद्ध का समय
आज मातृ नवमी श्राद्ध का समय सुबह 11 बजकर 45 मिनट से शुरू होकर दोपहर 03 बजकर 41 मिनट तक है. सूर्यास्त के बाद श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए. मातृ नवमी श्राद्ध पर कुतुप मुहूर्त 11 बजकर 45 मिनट से दोपहर 12 बजकर 32 मिनट तक है. कुतुप मुहूर्त की अवधि 47 मिनट की है.

नवमी श्राद्ध के लिए रौहिण मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 32 मिनट से दोपहर 01 बजकर 19 मिनट तक है. रौहिण मुहूर्त का कुल समय 47 मिनट है. इसके बाद अपराह्न काल दोपहर 01 बजकर 19 मिनट से दोपहर 03 बजकर 40 मिनट तक है. यह अवधि 02 घंटे 21 मिनट तक है.

पितृ पक्ष में मातृ नवमी श्राद्ध का महत्व
मातृ नवमी श्राद्ध के दिन माता, दादी, नानी पक्ष की सभी माता पितरों का श्राद्ध कर्म करते हैं. यदि आपके ससुराल पक्ष में कोई वंश नहीं है तो आप उनके माता पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान, ब्राह्मण भोज आदि कर सकते हैं.

मातृ पितरों को कैसे करें तृप्त?
आज स्नान के बाद काले तिल, चावल और जल से माता पितरों के लिए तर्पण करें. तर्पण के समय कुशा की पवित्री धारण करें. कुशा के अग्र भाग से जल ​अर्पित करना चाहिए, उसे पितर आसानी से ग्रहण करके तृप्त हो जाते हैं. इसके बाद माता पितरों के लिए सफेद वस्त्र, दही, अन्न, केला, मौसमी फल आदि का दान किसी ब्राह्मण को करें. उसके बाद कोई एक बर्तन दक्षिणा के रूप में दें.

आज के दिन माता पितरों के लिए ब्राह्मण भोज करें. गाय, कौआ, कुत्ता, देव आदि के लिए भोजन का एक अंश निकाल दें. उनको खिला दें. इसे पंचबलि कर्म कहते हैं. इनके माध्यम से पितरों को भोजन प्राप्त होता है. वे संतुष्ट होकर सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.

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