सोरठि महला ५ ॥
सतिगुर पूरे भाणा ॥ ता जपिआ नामु रमाणा ॥ गोबिंद किरपा धारी ॥ प्रभि राखी पैज हमारी ॥१॥ हरि के चरन सदा सुखदाई ॥ जो इछहि सोई फलु पावहि बिरथी आस न जाई ॥१॥ रहाउ ॥ क्रिपा करे जिसु प्रानपति दाता सोई संतु गुण गावै ॥ प्रेम भगति ता का मनु लीणा पारब्रहम मनि भावै ॥२॥ आठ पहर हरि का जसु रवणा बिखै ठगउरी लाथी ॥ संगि मिलाइ लीआ मेरै करतै संत साध भए साथी ॥३॥ करु गहि लीने सरबसु दीने आपहि आपु मिलाइआ ॥ कहु नानक सरब थोक पूरन पूरा सतिगुरु पाइआ ॥४॥१५॥७९॥
अर्थ: हे भाई! परमात्मा के चरण सदा सुख देने वाले हैं। (जो मनुष्य हरी के चरणों का आसरा लेते हैं, वह) जो कुछ (परमात्मा से) मांगते हैं वही फल प्राप्त कर लेते हैं। (परमात्मा की सहायत पर रखी हुई कोई भी) आस ख़ाली नहीं जाती।1। रहाउ।(पर, हे भाई!) जब गुरू को अच्छा लगता है (जब गुरू प्रसन्न होता है) तब ही परमात्मा का नाम जपा जा सकता है। परमात्मा ने मेहर की (गुरू मिलाया! गुरू की कृपा से हमने नाम जपा, तो) परमात्मा ने हमारी लाज रख ली (विष ठॅग बूटी से बचा लिया)।1।हे भाई! जीवन का मालिक दातार प्रभू जिस मनुष्य पर मेहर करता है वह संत (स्वभाव बन जाता है, और) परमात्मा की सिफत सालाह के गीत गाता है। उस मनुष्य का मन परमात्मा की प्यार भरी भक्ति में मस्त हो जाता है, वह मनुष्य परमात्मा को (भी) प्यारा लगने लगता है।2।हे भाई! आठों पहर (हर समय) परमात्मा की सिफत सालाह करने से विकारों की ठॅगबूटी का असर खत्म हो जाता है (जिस मनुष्य ने सिफत सालाह में मन जोड़ा) ईश्वर ने (उसको) अपने साथ मिला लिया, संत जन उसके संगी-साथी बन गए।3।(हे भाई! गुरू की शरण पड़ कर जिस भी मनुष्य ने प्रभू-चरणों की आराधना की) प्रभू ने उसका हाथ पकड़ के उसको सब कुछ बख्श दिया, प्रभू ने उसको अपना आप ही मिला दिया। हे नानक! कह–जिस मनुष्य को पूरा गुरू मिल गया, उसके सारे काम सफल हो गए।4।15।79।