हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 23 नवंबर 2023

धनासरी महला १ घरु २ असटपदीआ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ गुरु सागरु रतनी भरपूरे ॥ अम्रितु संत चुगहि नही दूरे ॥ हरि रसु चोग चुगहि प्रभ भावै ॥ सरवर महि हंसु प्रानपति पावै ॥१॥ किआ बगु बपुड़ा छपड़ी नाए ॥ कीचड़ि डूबै मैलु न जाए ॥१॥ रहाउ ॥ रखि रखि चरन धरे वीचारी ॥ दुबिधा.

धनासरी महला १ घरु २ असटपदीआ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ गुरु सागरु रतनी भरपूरे ॥ अम्रितु संत चुगहि नही दूरे ॥ हरि रसु चोग चुगहि प्रभ भावै ॥ सरवर महि हंसु प्रानपति पावै ॥१॥ किआ बगु बपुड़ा छपड़ी नाए ॥ कीचड़ि डूबै मैलु न जाए ॥१॥ रहाउ ॥ रखि रखि चरन धरे वीचारी ॥ दुबिधा छोडि भए निरंकारी ॥ मुकति पदारथु हरि रस चाखे ॥ आवण जाण रहे गुरि राखे ॥२॥ सरवर हंसा छोडि न जाए ॥ प्रेम भगति करि सहजि समाए ॥ सरवर महि हंसु हंस महि सागरु ॥ अकथ कथा गुर बचनी आदरु ॥३॥ सुंन मंडल इकु जोगी बैसे ॥ नारि न पुरखु कहहु कोऊ कैसे ॥ त्रिभवण जोति रहे लिव लाई ॥ सुरि नर नाथ सचे सरणाई ॥४॥ आनंद मूलु अनाथ अधारी ॥ गुरमुखि भगति सहजि बीचारी ॥ भगति वछल भै काटणहारे ॥ हउमै मारि मिले पगु धारे ॥५॥ अनिक जतन करि कालु संताए ॥ मरणु लिखाए मंडल महि आए ॥ जनमु पदारथु दुबिधा खोवै ॥ आपु न चीनसि भ्रमि भ्रमि रोवै ॥६॥ कहतउ पड़तउ सुणतउ एक ॥ धीरज धरमु धरणीधर टेक ॥ जतु सतु संजमु रिदै समाए ॥ चउथे पद कउ जे मनु पतीआए ॥७॥ साचे निरमल मैलु न लागै ॥ गुर कै सबदि भरम भउ भागै ॥ सूरति मूरति आदि अनूपु ॥ नानकु जाचै साचु सरूपु ॥८॥१॥

धनासरी महला १ घरु २ असटपदीआ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ गुरु सागरु रतनी भरपूरे ॥ अम्रितु संत चुगहि नही दूरे ॥ हरि रसु चोग चुगहि प्रभ भावै ॥ सरवर महि हंसु प्रानपति पावै ॥१॥ किआ बगु बपुड़ा छपड़ी नाए ॥ कीचड़ि डूबै मैलु न जाए ॥१॥ रहाउ ॥ रखि रखि चरन धरे वीचारी ॥ दुबिधा छोडि भए निरंकारी ॥ मुकति पदारथु हरि रस चाखे ॥ आवण जाण रहे गुरि राखे ॥२॥ सरवर हंसा छोडि न जाए ॥ प्रेम भगति करि सहजि समाए ॥ सरवर महि हंसु हंस महि सागरु ॥ अकथ कथा गुर बचनी आदरु ॥३॥ सुंन मंडल इकु जोगी बैसे ॥ नारि न पुरखु कहहु कोऊ कैसे ॥ त्रिभवण जोति रहे लिव लाई ॥ सुरि नर नाथ सचे सरणाई ॥४॥ आनंद मूलु अनाथ अधारी ॥ गुरमुखि भगति सहजि बीचारी ॥ भगति वछल भै काटणहारे ॥ हउमै मारि मिले पगु धारे ॥५॥ अनिक जतन करि कालु संताए ॥ मरणु लिखाए मंडल महि आए ॥ जनमु पदारथु दुबिधा खोवै ॥ आपु न चीनसि भ्रमि भ्रमि रोवै ॥६॥ कहतउ पड़तउ सुणतउ एक ॥ धीरज धरमु धरणीधर टेक ॥ जतु सतु संजमु रिदै समाए ॥ चउथे पद कउ जे मनु पतीआए ॥७॥ साचे निरमल मैलु न लागै ॥ गुर कै सबदि भरम भउ भागै ॥ सूरति मूरति आदि अनूपु ॥ नानकु जाचै साचु सरूपु ॥८॥१॥

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