बिलावलु महला १ ॥ मनु मंदरु तनु वेस कलंदरु घट ही तीरथि नावा ॥ एकु सबदु मेरै प्रानि बसतु है बाहुड़ि जनमि न आवा ॥१॥ मनु बेधिआ दइआल सेती मेरी माई ॥ कउणु जाणै पीर पराई ॥ हम नाही चिंत पराई ॥१॥ रहाउ ॥ अगम अगोचर अलख अपारा चिंता करहु हमारी ॥ जलि थलि महीअलि भरिपुरि लीणा घटि घटि जोति तुम्ह्हारी ॥२॥ सिख मति सभ बुधि तुम्ह्हारी मंदिर छावा तेरे ॥ तुझ बिनु अवरु न जाणा मेरे साहिबा गुण गावा नित तेरे ॥३॥ जीअ जंत सभि सरणि तुम्ह्हारी सरब चिंत तुधु पासे ॥ जो तुधु भावै सोई चंगा इक नानक की अरदासे ॥४॥२॥
अर्थ :-हे मेरी माँ ! (मेरा) मन दया-के-घर भगवान (के चरणों) में विझ गया है। अब मैं (भगवान के बिना) किसी ओर की आशा नहीं रखता, क्योंकि मुझे यकीन हो गया है कि (परमात्मा के बिना) कोई ओर किसी दूजे का दु:ख-दर्द समझ नहीं सकता।1।रहाउ। मेरा मन (भगवान-देव के रहने के लिए) मन्दिर (बन गया) है, मेरा शरीर (भावार्थ, मेरी हरेक ज्ञान-इंद्री मन्दिर की यात्रा करने वाला) रमता साधू बन गई है (भावार्थ, मेरे ज्ञान-इंद्रे बाहर भटकने की जगह अंदर-बसते परमात्मा की तरफ मुड़ गई है), अब मैं हृदय-तीर्थ में ही स्नान करता हूँ। परमात्मा की सिफ़त-सालाह का शब्द मेरी जीवन में टिक गया है (मेरी जीवन का सहारा बन गया। इस लिए मुझे यकीन हो गया है कि) मैं फिर जन्म में नहीं आऊंगा।1। हे अपहुंच ! हे अगोचर ! हे अद्रिशट ! हे बयंत भगवान ! तूं ही हमारी सब जीवों की संभाल करता हैं। तूं जल में, धरती में, आकाश में हर जगह पूरी तरह व्यापक हैं, हरेक (जीव के) हृदय में तेरी जोति मौजूद है।2। हे मेरे स्वामी-भगवान ! सब जीवों के मन और शरीर तेरे ही रचे हुए हैं, शिक्षा अक्ल समझ सब जीवों को तेरे से ही मिलती है। तेरे बराबर का मैं किसी ओर को नहीं जानता। मैं नित तेरे ही गुण गाता हूँ।3। सारे जीव जंत तेरे ही सहारे हैं, तुझे ही सब की संभाल का फिक्र है। नानक की (तेरे दर पर) सिर्फ यही बेनती है कि जो तेरी रजा हो वह मुझे अच्छी लगे (मैं सदा तेरी रजा में राजी रहूँ)।4।2।