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domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init
action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /var/www/dainiksaveratimescom/wp-includes/functions.php on line 6114सलोकु मः ३ ॥ जनम जनम की इसु मन कउ मलु लागी काला होआ सिआहु ॥ खंनली धोती उजली न होवई जे सउ धोवणि पाहु ॥ गुर परसादी जीवतु मरै उलटी होवै मति बदलाहु ॥ नानक मैलु न लगई ना फिरि जोनी पाहु ॥१॥ मः ३ ॥ चहु जुगी कलि काली कांढी इक उतम पदवी इसु जुग माहि ॥ गुरमुखि हरि कीरति फलु पाईऐ जिन कउ हरि लिखि पाहि ॥ नानक गुर परसादी अनदिनु भगति हरि उचरहि हरि भगती माहि समाहि ॥२॥
कई जन्मों की इस मन को मैल लगी हुई है जिस कारन यह बहुत कला हो गया है (सफेद-उजला नहीं हो सकता), जैसे तेली का कपड़े का चिथड़ा धोने से साफ़ नहीं होता, चाहे सौ बार धोने का यतन करो। अगर गुरु की कृपा से मन जीवित ही मर जाए और मति बदल कर (माया से उलट हो जाए, तो हे नानक! चरों युगों में कलयुग को ही काला कहते है, पर इस युग में भी एक उतम पदवी मिल सकती है। (वह पदवी यह है कि) जिन के हृदये में हरी (भक्ति-रूप लेख पहली कि हुई कमाई अनुसार) लिख देता है वह गुरमुख हरी कि सिफत (रूप) फल (इसी युग में) प्राप्त करते है, और हे नानक! वह मनुख गुरु कि कृपा से हर रोज हरी कि भक्ति करते हैं और भक्ति में ही लीन हो जाते हैं॥२॥