हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 31 मार्च 2024

धनासरी महला ५ छंत ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ सतिगुर दीन दइआल जिसु संगि हरि गावीऐ जीउ ॥ अम्रितु हरि का नामु साधसंगि रावीऐ जीउ ॥ भजु संगि साधू इकु अराधू जनम मरन दुख नासए ॥ धुरि करमु लिखिआ साचु सिखिआ कटी जम की फासए ॥ भै भरम नाठे छुटी गाठे जम पंथि मूलि न आवीऐ.

धनासरी महला ५ छंत ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ सतिगुर दीन दइआल जिसु संगि हरि गावीऐ जीउ ॥ अम्रितु हरि का नामु साधसंगि रावीऐ जीउ ॥ भजु संगि साधू इकु अराधू जनम मरन दुख नासए ॥ धुरि करमु लिखिआ साचु सिखिआ कटी जम की फासए ॥ भै भरम नाठे छुटी गाठे जम पंथि मूलि न आवीऐ ॥ बिनवंति नानक धारि किरपा सदा हरि गुण गावीऐ ॥१॥

अर्थ: हे भाई! वह गुरू दीनों पर दया करने वाला है जिसकी संगति में (रह कर) परमात्मा की सिफत सालाह की जा सकती है। गुरू की संगति में आत्मिक जीवन देने वाला हरी-नाम सिमरा जा सकता है। हे भाई! गुरू की संगति में जा, (वहाँ) एक प्रभू का सिमरन कर, (सिमरन की बरकति से) जनम-मरण के दुख दूर हो जाते हैं। (जिस मनुष्य के माथे पर) धुर-दरगाह से (सिमरन करने के लिए) बख्शिश (का लेख) लिखा होता है, वही सदा-स्थिर हरी-नाम सिमरन की शिक्षा ग्रहण करता है, उसका आत्मिक मौत का फंदा काटा जाता है। हे भाई! सिमरन की बरकति से सारे डर सारे भरम नाश हो जाते, (मन मे बँधी हुई) गाँठ खुल जाती है, (फिर वह) आत्मिक मौत सहेड़ने वाले रास्ते पर बिल्कुल नहीं चलता। नानक विनती करता है– हे प्रभू! मेहर कर कि हम जीव सदा तेरी सिफत सालाह करते रहें।1।

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