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domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init
action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /var/www/dainiksaveratimescom/wp-includes/functions.php on line 6114धनासरी महला ४ ॥ कलिजुग का धरमु कहहु तुम भाई किव छूटह हम छुटकाकी ॥ हरि हरि जपु बेड़ी हरि तुलहा हरि जपिओ तरै तराकी ॥१॥ हरि जी लाज रखहु हरि जन की ॥ हरि हरि जपनु जपावहु अपना हम मागी भगति इकाकी ॥ रहाउ ॥ हरि के सेवक से हरि पिआरे जिन जपिओ हरि बचनाकी ॥ लेखा चित्र गुपति जो लिखिआ सभ छूटी जम की बाकी ॥२॥ हरि के संत जपिओ मनि हरि हरि लगि संगति साध जना की ॥ दिनीअरु सूरु त्रिसना अगनि बुझानी सिव चरिओ चंदु चंदाकी ॥३॥ तुम वड पुरख वड अगम अगोचर तुम आपे आपि अपाकी ॥ जन नानक कउ प्रभ किरपा कीजै करि दासनि दास दसाकी ॥४॥६॥
अर्थ :-हे भगवान जी ! (दुनिया के विकारों के झंझटों में से) अपने सेवक की इज्ज़त बचा ले। हे हरि ! मुझे अपना नाम जपने की समरथा दे। मैं (तेरे से) सिर्फ तेरी भक्ति का दान मांग रहा हूँ।रहाउ। हे भाई ! मुझे वह धर्म बता जिस के साथ जगत के विकारों के झंझटों से बचा जा सके। मैं इन झंझटों से बचना चाहता हूँ। बता; मैं कैसे बचूँ? (उत्तर-) परमात्मा के नाम का जाप कश्ती है,नाम ही तुलहा है। जिस मनुख ने हरि-नाम जपा वह तैराक बन के (संसार-सागर से) पार निकल जाता है।1। हे भाई ! जिन मनुष्यों ने गुरु के वचनों के द्वारा परमात्मा का नाम जपा, वह सेवक परमात्मा को प्यारे लगते हैं। चित्र गुप्त ने जो भी उन (के कर्मो) का लेख लिख रखा था, धर्मराज का वह सारा हिसाब ही खत्म हो जाता है।2। हे भाई ! जिन संत जनों ने साध जनों की संगत में बैठ के अपने मन में परमात्मा के नाम का जाप किया, उन के अंदर कलिआण रूप (परमात्मा प्रकट हो गया, मानो) ठंडक पहुचाने वाला चाँद चड़ गया, जिस ने (उन के मन में से) तृष्णा की अग्नि बुझा दी; (जिस ने विकारों का) तपता सूरज (शांत कर दिया)।3। हे भगवान ! तूं सब से बड़ा हैं, तूं सर्व-व्यापक हैं; तूं अपहुंच हैं; ज्ञान-इन्द्रियों के द्वारा तेरे तक पहुंच नहीं हो सकती। तूं (हर जगह) आप ही आप हैं। गुरू नानक जी कहते हैं, हे भगवान ! अपने दास नानक ऊपर कृपा कर, और, अपने दासो के दासो का दास बना ले।4।6।