सर्वशक्ति संपन्न होता है मां बगलामुखी का साधक

वैशाख शुक्ल अष्टमी को देवी बगलामुखी के अवतरण दिवस को मां बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मां की पूजाअर्चना का विधि-विधान है। भारत मां बगलामुखी के तीन प्रमुख ऐतिहासिक मंदिरों में दतिया, नलखेड़ा सहित एक कांगड़ा (हि. प्र.) में है। कहा जाता है कि मां बगलामुखी की साधना करने वाला.

वैशाख शुक्ल अष्टमी को देवी बगलामुखी के अवतरण दिवस को मां बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मां की पूजाअर्चना का विधि-विधान है। भारत मां बगलामुखी के तीन प्रमुख ऐतिहासिक मंदिरों में दतिया, नलखेड़ा सहित एक कांगड़ा (हि. प्र.) में है। कहा जाता है कि मां बगलामुखी की साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति संपन्न हो जाता है। देवी बगलामुखी की पूजा-अर्चना सर्वशक्ति संपन्न बनाने वाली, शत्रुओं का शमन करने वाली तथा मुकद्दमों में विजय दिलाने वाली होती है। मां का निम्न मंत्र अपना कार्य करने में सक्षम है

ॐ ह्री बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाच मुखं पद स्तंभय जिह्वां कीलय बुद्धि विनाशय ह्री ॐ स्वाहा।
लता प्राप्त होती है। मंत्र का जाप करने से पूर्व बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए।

विजय देने वाली एवं शत्रुनाशक है मां बगलामुखी: माना जाता है कि दशमविधाओं में आठवीं महाविद्या हैं मां बगलामुखी। इस तरह संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्ति का समावेश है मां बगलामुखी। इनकी उपासना से शत्रुनाश, वाद-विवाद एवं विजय मिलती है, शत्रुओं का नाश होता है। इस तरह भक्त जीवन की बाधाओं से मुक्ति पाता है।

कैसे हो मां का पूजन: पूजा हेतु प्रात:काल पीले वस्त्रों में मंदिर में अकेले या सिद्धपुरुष के साथ बैठकर साधना करनी चाहिए। सर्वप्रथम चौंकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवती बगलामुखी का चित्र स्थापित करें। पूजा करने के लिए पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें। तदनंतर आचमन कर हाथ धोएं। आसन पवित्रीकरण, स्वस्तिवाचन, दीप प्रज्वलन के बाद हाथ में पीले चावल, हरिद्रा, पीले फूल व दक्षिणा लेकर संकल्प करें।

क्यों है मां को पीला रंग प्रिय: माना जाता है कि मां बगलामुखी स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात् यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और बुरी शक्तियों का नाश करती हैं। मां बगलामुखी का एक नाम पीतांबरा है। इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग अधिकतर होता है। देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण समान पीला होता है अत: साधक को माता की प्रसन्नता के लिए पीले वस्त्र धारण करने चाहिएं।

कथा: प्रचलित कथा के अनुसार सत्युग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न होने पर संपूर्ण विश्व में नाश होने लगा, चारों ओर हाहाकार मच गया। लोग संकट में पड़ गए । यह तूफान सब कुछ नष्ट करता हुआ आगे बढ़ रहा था जिसे देख कर भगवान विष्णु चिंतित हो गए। भगवान शिव का स्मरण करने पर उन्होंने बताया कि शक्ति के अतिरिक्त कोई इस विनाश को नहीं रोक सकता अत: उनकी शरण में जाएं। भगवान विष्णु ने तप करके महात्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न किया एवं हरिद्रा झील में जलक्रीड़ा करती हुई महापीत देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ। इस तरह देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुईं। भगवती बगलामुखी ने विष्णु जी को इच्छित वर दिया एवं सृष्टि का नाश रुका।

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