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ये हैं मकर संक्रांति पर तिल के दान के पीछे की पौराणिक कथाएं, देता है हर कष्टों से मुक्ति

जैसा के आप सभी जानते हैं के आज यानी के 14 जनवरी को पुरे देश में बड़ी धूम-धाम से मकर सक्रांति मनाई जा रही है। बता दें के इस दिन सूर्य देव धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं इस वजह से इसे मकर संक्राति कहा जाता है। सिर्फ यही नहीं बल्कि आज के दिन जो व्यक्ति दान-पुण्य करता है उसका जीवन बेहद सुखमय होता है। बता दें के दान-पुण्य के आलावा आज के दिन तिल भी खाये जाते है और साथ ही इससे स्नान भी किया जाता है। ऐसे में आप ये तो जानते होंगे के तिल दान का आज के दिन कितना जरुरी माना जाता है लेकिन क्यों किया जाता है ये नहीं जानते होंगे। आज के दिन हम आपको बताएंगे पौराणिक मान्यताएं और कथाओं के अनुसार तिल दान करने के पीछे की वजह के बारे में –

मकर संक्रांति पर तिल दान पर प्रचलित कथा के अनुसार- सूर्य देव की दो पत्नियां थीं, जिनका नाम था छाया और संज्ञा। कहा जाता है कि शनि देव छाया के पुत्र थे और संज्ञा के पुत्र यमराज थे। एक बार छाया संज्ञा के पुत्र यमराज के साथ भेदभाव कर रही थीं, जिसे सूर्य देव ने देख लिया। यह सब देखकर सूर्य देव अत्यंत क्रोधित हुए और छाया एवं शनि को खुद से अलग कर दिया। इस घटना के बाद छाया और शनि देव सूर्य देव से नाराज़ हो गए और उन्होंने सूर्य देव को कुष्ठ रोग होने का श्राप दे दिया। जैसे ही यमराज ने देखा कि उनके पिता कष्ट में हैं तो उन्होंने कठोर तपस्या की और पिता सूर्य देव को कुष्ठ रोग से मुक्त कराया। वहीं सूर्य देव ने गुस्से में शनि देव का घर ‘कुंभ’ जला दिया। जिसके कारण शनि देव और उनकी माता को कष्ट हुआ।

इसके बाद यमराज ने सूर्य देव से आग्रह किया। यमराज की बात सुनने के बाद सूर्य देव, शनि देव और छाया से मिलने के लिए उनके घर पहुंचे। वहां सब कुछ जल चुका था लेकिन काला तिल जैसा का तैसा ही था। सूर्य देव के घर आगमन पर शनि देव ने उनकी पूजा काले तिल से की, जिससे सूर्य देव प्रसन्न हुए और शनि देव को आशीर्वाद में दूसरा घर ‘मकर’ दिया। तभी से मान्यता है कि जो भी व्यक्ति मकर संक्रांति के दिन काले तिल से सूर्य देव की पूजा करेगा या काले तिल का दान करेगा, उसके सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाएंगे।

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