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‘Charak: Fire of Faith’ की बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीनिंग, 2025 की मच अवेटेड फिल्म रही

2025 की सबसे चर्चित और मच अवेटेड फिल्मों में से एक, ‘चरक: फेयर ऑफ फेथ’, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का परचम लहराने के लिए पूरी तरह तैयार है।

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एंटरटेनमेंट डेस्क: 2025 की सबसे चर्चित और मच अवेटेड फिल्मों में से एक, ‘चरक: फेयर ऑफ फेथ’, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का परचम लहराने के लिए पूरी तरह तैयार है। बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में इसकी हालिया स्क्रीनिंग ने न सिर्फ दर्शकों बल्कि आलोचकों के बीच भी हलचल मचा दी है। सुदीप्तो सेन, जिन्होंने ‘द केरला स्टोरी’जैसी चर्चित और विवादास्पद फिल्म से दर्शकों को झकझोरा था, अब निर्माता की भूमिका में अपने पहले प्रोजेक्ट के साथ वापसी कर रहे हैं।

यह फिल्म भारतीय लोककथाओं और अंधविश्वास के गहरे मेल से उपजे भयावह सच को एक नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत करती है। ‘चरक पूजा’, जो बंगाल के कुछ इलाकों में सदियों से चली आ रही एक धार्मिक परंपरा है, उसी के इर्द-गिर्द बुनी गई इस कहानी में भक्ति, बलिदान और सामाजिक कड़वाहट की गहन परतें सामने आती हैं।

-बर्लिन से कान्स तक – अंतरराष्ट्रीय सराहना

बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में चरक की स्क्रीनिंग के बाद, इसे विश्व भर के फिल्म समीक्षकों ने जबरदस्त सराहना दी है। एम्पायर मैगज़ीन के एलेक्स गॉडफ्रे ने इसे “शानदार और प्रभावशाली बताया, वहीं नीऑन रेटेड की याएल कॉफ़मैन का कहना है कि फिल्म का कांसेप्ट “बेहद अनोखा और सोचने पर मजबूर करने वाला” है।

फोकस फीचर्स की किस्का हिग्स ने ट्रेलर को ‘कमाल का’ कहा और अबुंडंटिया एंटरटेनमेंट के विक्रम मल्होत्रा ने फिल्म को “गहराई से बनाई गई, रोमांचक और अंत तक दर्शक के मन में बनी रहने वाली कहानी” के रूप में वर्णित किया।

-‘चरक’ – सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक सामाजिक व्याख्या

‘चरक’ केवल एक फोकलोर हॉरर फिल्म नहीं है। यह समाज में पीढ़ियों से पल रहे ‘अंधविश्वास, पितृसत्ता और चुप्पी के कल्चर पर गहरी चोट करती है। कहानी के लेखक संजय हलदर ने इस परंपरा में छिपे दर्द और शोषण को मानवीय संवेदनाओं के साथ पेश किया है। फिल्म का निर्देशन शीलादित्य मौलिक ने किया है, जो इस विषय को नाटकीयता से अधिक सच्चाई के साथ सामने लाते हैं।

-भारतीय संस्कृति की गहराई को समझने का एक जरिया

अमर उजाला के चीफ़ एंटरटेनमेंट एडिटर, पंकज शुक्ल ने अपने रिव्यू में लिखा, “यह फिल्म भारतीय संस्कृति और पौराणिक कथाओं की गहराई को शानदार तरीके से पेश करती है। अगर कोई भारत को समझना चाहता है, तो उसे चरक जरूर देखनी चाहिए।”

-जल्द होगी कान्स फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीनिंग

अब जब चरक बर्लिन की सफलता के बाद कान्स फिल्म फेस्टिवल की ओर अग्रसर है, यह साफ है कि भारत की लोककथाओं और सामाजिक विषयों पर आधारित कहानियों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नया सम्मान और स्थान मिल रहा है।

सुदीप्तो सेन प्रोडक्शंस और सिपिंग टी सिनेमा के बैनर तले बनी इस फिल्म ने यह साबित कर दिया है कि जब भारतीय कहानियों को सही संवेदना और सिनेमा की समझ के साथ प्रस्तुत किया जाए, तो वे विश्व स्तर पर भी दमदार छाप छोड़ सकती हैं।

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