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तुलसी की मानस को ही मूल रामकथा मान लेना घमंड की बात होगी : Devdutt Pattanaik

नई दिल्लीः रामायण और महाभारत जैसे आख्यानों पर आधारित चरित्रों तथा कथाओं पर लेखन करने वाले र्चिचत लेखक देवदत्त पटनायक का मानना है कि रामकथा को लेकर भारत में तमाम प्रसंग प्रचलित हैं और केवल तुलसीदास कृत ‘रामचरित मानस’ को ही मूल कथा मान लेना ‘‘घमंड’’ है तथा ऐसी सोच भारत को तोड़ देगी। पौराणिक चरित्रों पर ‘जय’, ‘बुक ऑफ राम’, ‘सीता’, ‘विष्णु’ ‘गीता’ जैसी बीस से अधिक पुस्तकें लिख चुके पटनायक का कहना है कि किसी भी समाज के आख्यानों के जरिये उस समाज के मनोविज्ञन को समझने में मदद मिलती है।

पटनायक ने कहा कि वह आख्यान शास्त्र पर लिखते हैं। उन्होंने कहा कि बाइबिल भी मध्य एशिया का एक ‘आख्यान शास्त्र’ है और इसी तरह अरब जगत, चीन, जापान तथा अफ्रीकी देशों के भी अपने आख्यान हैं और वे अपने को आख्यानों का विशेषज्ञ मानते हैं। यह पूछे जाने पर कि उन्होंने अपने लेखन और व्याख्यानों के लिए इस क्षेत्र और इससे संबंधित विषय को ही क्यों चुना, पटनायक ने कहा, कि ‘मैंने देखा कि लोगों का इस विषय में ज्ञन बहुत ही कम है। बिलकुल नहीं के बराबर है।’’ पटनायक ने कहा, ‘‘भारत में रामायण और महाभारत को लेकर बच्चों की कहानियां हैं किंतु उनके पीछे जो विषद् वेिषण हैं, व्याख्या है, वो यहां कहीं नहीं मिल रही।’’

उन्होंने कहा कि ऐसी बातें या तो कहानियों के तौर पर सुना दी जाती हैं या इन पर गुरुजन जैसे लोग आध्यात्मिक संदर्भों में कुछ बता देते हैं किंतु इनके बारे में गूढ़ शोध करके लिखने का काम अभी तक कम ही हुआ है। पटनायक ने कहा कि ज्यादातर लोग रामायण और महाभारत के आधार पर उपन्यास लिखते हैं और वे काफी लोकप्रिय हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि लोगों को लगता है कि ये उपन्यास ही आख्यान हैं किंतु उपन्यास और आख्यान शास्त्र में काफी अंतर है।

यह पूछे जाने पर कि भारत के अधिकतर आख्यान पवित्र ग्रंथों से जुड़े हैं, ऐसे में इन पर लिखने या व्याख्यान देने से क्या लोगों की भावनाएं आहत होने का जोखिम नहीं रहता है, उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस का उदाहरण देते हुए कहा कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में रामकथा का मतलब बहुत से लोग मानस को ही लेते हैं। पटनायक ने कहा कि भारत का मतलब केवल हिंदी भाषी क्षेत्र ही नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं हिंदी भाषी नहीं हूं। आप हिंदी भाषी हैं। क्या आपको तमिल, बांग्ला, उड़िया, मलयालम के आख्यानों के बारे में पता है, क्या आप उनको पढ़ते हैं? तो यह कैसे मान लें कि हिंदी भाषी, जो रामचरित मानस कहती है, वही परम सत्य है? यह तो घमंड की बात हो गयी कि जो मुझे पता है वही सही है और जो मुझे नहीं पता वह झूठ है, काल्पनिक है। यह सोचने का तरीका भारत को तोड़ देगा।’’

पटनायक ने कहा, ‘‘कितनी दुखद बात है कि जो इनके बारे में बताना चाहते हैं, जो उनके घरों में सरस्वती लाना चाहते हैं, उन पर कीचड़ उछाली जा रही है।’’ ऐतिहासिक और आख्यान चरित्रों के बारे में दुनिया भर में युवा पीढ़ी का आकर्षण बढऩे का कारण पूछे जाने पर पटनायक ने कहा कि बीस वर्ष पहले एक श्रृंखला निकली थी ‘हैरी पॉटर’ और इसकी कहानी पूरी दुनिया में फैल गयी। उन्होंने कहा कि उसी समय एक फिल्म-त्रयी आयी थी ‘लार्डस ऑफ रिंग्स’ जो अत्यधिक सफल हुई।

उन्होंने कहा, ‘‘इन दोनों की सफलता से दुनिया भर में लोगों की रुचि आख्यान शास्त्र में फिर जाग गयी क्योंकि इनमें यूरोपीय आख्यानों के बारे में बताया गया था, फिर लोगों को लगा कि ऐसे आख्यान तो हमारे समाज और संस्कृति में भी हैं।’’ इस सवाल पर कि पुस्तक लेखन से वह ‘पोड कॉस्ट’ के क्षेत्र में आने के लिए कैसे प्रेरित हुए, पटनायक ने कहा कि वह सबसे पहले एक टीवी धारावाहिक ‘देवलोक’ से जुड़े जो एपिक चैनल पर आया था।

उन्होंने कहा, ‘‘आज हमारे सामने समस्या यही है कि हमारे बच्चों को शास्त्र का सही ज्ञान नहीं मिल पा रहा है। ‘अल्प विद्या भयंकर’ वाली उक्ति के अनुसार बच्चों या अन्य लोगों को व्हाट्सऐप आदि से जो अल्प ज्ञन मिल रहा है, वह खतरनाक है। बच्चे स्कूल में जाते हैं तो वे विज्ञान, गणित और भाषा पढ़ते हैं लेकिन उन्हें, वेद, उपनिषद और आख्यानों के बारे में जरा भी जानकारी नहीं है।’’

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