कारोबारी हितों को लेकर ब्रिक्स की सदस्यता के लिए कई देशों की चाहत

  ब्रिक्स यानी ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीकी देशों के संगठन की बैठक इस बार बेहद महत्वपूर्ण रहने जा रही है। चूंकि दुनिया की कुल सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का 32 फीसद से ज्यादा और करीब इकतालिस प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व यह संगठन करता है, इसलिए इस संगठन का सदस्य बनने के.

 

ब्रिक्स यानी ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीकी देशों के संगठन की बैठक इस बार बेहद महत्वपूर्ण रहने जा रही है। चूंकि दुनिया की कुल सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का 32 फीसद से ज्यादा और करीब इकतालिस प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व यह संगठन करता है, इसलिए इस संगठन का सदस्य बनने के लिए अब एशिया के साथ ही लैटिन अमेरिकी देशों की दिलचस्पी बढ़ी है।

सूचनाओं के अनुसार ब्रिक्स का सदस्य बनने के लिए जहां एशिया के महत्वपूर्ण मुल्क बांग्लादेश और सऊदी अरब ने दिलचस्पी दिखाई है, वहीं लैटिन अमेरिकी देश अर्जेटीना भी चाहता है कि इसका सदस्य बने। वैसे कहा यह भी जा रहा है कि सिर्फ ये देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के करीब 23-24 देशों ने ब्रिक्स का सदस्य बनने की इच्छा जाहिर की है।

दक्षिण अफ्रीका में हो रही ब्रिक्स की बैठक में इन देशों की सदस्यता पर मुहर लगने की संभावना है। इसके लिए भारत और चीन दोनों के बीच आपसी समझदारी विकसित होने के संकेत है। बांग्लादेश भारत और चीन का पड़ोसी है और होजरी एवं वस्त्र उद्योग के चलते एशिया के इस छोटे देश की अर्थव्यवस्था तेजी से विकसित हो रही है।

इसलिए जहां उसकी सदस्यता से पड़ोसी मुल्कों के बीच कारोबारी संभावनाएं बढ़ेंगी, वहीं बांग्लादेश को भी लाभ होगा। मध्य एशिया के देश सऊदी अरब की ख्याति उसके तेल के अकूत भंडार और पेट्रो डालर के चलते है। यहां पेट्रोलियम आधारित उद्योग भी हैं। सऊदी भी चाहता है कि उसका दुनिया के गैर अमेरिकी खेमे के देशों से भी कारोबार बढ़े। अब तक उसकी छवि अमेरिकी खेमे के देश की रही है।

लेकिन अब वह आर्थिक और कारोबारी हितों को देखते हुए अपनी यह छवि तोड़ना चाहता है। इसलिए उसकी भी सदस्यता होना जहां ब्रिक्स देशों के लिए महत्वपूर्ण होगा, वहीं खुद उसके लिए भी बेहतर स्थिति होगी। हाल के वर्षों में लैटिन अमेरिकी देशों की भी दिलचस्पी एशियाई देशों के साथ कारोबार और आर्थिक रिश्ते बढ़ाने के लिए बढ़ी है। चीन और भारत की कंपनियां यहां पहले से ही सक्रिय हैं।

अर्जेटीना लैटिन अमेरिकी महाद्वीप का ब्राजील के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है। अगर वह ब्रिक्स का सदस्य बनता है तो ब्राजील के बाद लैटिन अमेरिका का वह दूसरा सदस्य देश होगा। जाहिर है कि इससे जहां उसे पड़ोसी ब्राजील से आर्थिक और कारोबारी रिश्ते मजबूत करने में मदद मिलेगी, वहीं उसे ब्रिक्स देशों से भी सहयोग मिलेगा। वैसे एक खास बात इस बार की ब्रिक्स बैठक लेकर देखी जा रही है।

ऐसी अहमियत पहले इस बैठक को लेकर नहीं दिखी, जैसी इस बार दिख रही है। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इस बैठक को लेकर बेहद संजीदगी से देखा जा रहा है। इस बीच दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति साइरल रामाफोसा ने ब्रिक्स के साथ अफ्रीकी देशों की एक विशेष बैठक 24 अगस्त, 2023 को आयोजित की है, जिसमें पीएम मोदी भी हिस्सा लेंगे। इस बैठक को ब्रिक्स संगठन के अफ्रीका में विस्तार के तौर पर देखा जा रहा है।

इस बैठक में तकरीबन 40 छोटे-बड़े देशों के राष्ट्र प्रमुखों के हिस्सा लेने की संभावना है। जबकि ज्यादातर देशों की चाहत चीन और भारत जैसी विशाल अर्थव्यवस्थाओं के साथ कारोबारी फायदा उठाने की है, इसीलिए वे इस अंतर्राष्ट्रीय संगठन में खुद शामिल होने के लिए अर्जी लगाए बैठे हैं। ऐसे संकेत हैं कि चीन भी नए सदस्यों को शामिल करने को लेकर उत्साहित है। जिस तरह की स्थिति है, उससे साफ है कि आने वाले दिनों में ब्रिक्स अंतराष्ट्रीय स्तर कारोबारी और आर्थिक हितों को लेकर दुनिया का अहम संगठन बनकर उभरेगा।

(वरिष्ठ भारतीय पत्रकार—उमेश चतुर्वेदी)

 

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