आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई जब आया तो लोगों, विशेषकर तकनीक की दुनिया ने इसका जबरदस्त स्वागत किया। इसके फायदे गिनाने शुरू हुए। इस तकनीक के कई जानकारों ने तो यहां तक कह दिया था कि एआई ना सिर्फ बेहद नायाब, बल्कि इसके जरिए महीनों के काम कुछ घंटों में पूरे किये जा सकते हैं। लेकिन अब इसी एआई को लोगों के लिए मुसीबत बन रहा है। इसे लेकर अब दुनिया के बड़े देश सामने आ चुके हैं। लंदन में दो दिनों तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सुरक्षा पर हुई बैठक के बाद दुनिया के अट्ठाइस देश एक साथ आए हैं और उन्होंने इस पर प्रभावी नियंत्रण के लिए काम करने और सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों को कानूनी दायरे में लाने पर सहमति जताई है। इन देशों में दुनिया के इलेक्ट्रॉनिक और इंटरनेट उपभोक्ता का हब बन चुके भारत और चीन भी शामिल हैं।
ब्रिटेन की राजधानी लंदन में एक और दो नवंबर को चली इस बैठक में यूरोपीय संघ के साथ ब्रिटेन भी शामिल रहा। इसमें शामिल सभी 28 देशों ने दुनिया का पहला आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सुरक्षा समझौता किया है। इस समझौते में तय किया गया है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संबंधित जोखिमों का आकलन ये देश साथ मिलकर करेंगे। चूंकि यह बैठक लंदन के ब्लैचले पार्क में हुई। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने इसीलिए कहा है कि इस समझौते को ब्लैचले घोषणा के नाम से जाना जाएगा।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के अनुसार, ब्लैचले घोषणा एआई की सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण उपलब्धि है। जिससे यह पता चलता है कि विश्व की ताकतवर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस शक्तियां इस प्रौद्योगिकी के जोखिम को समझने के लिए तैयार हैं। माना जा रहा है कि एआई ना सिर्फ कार्य संस्कृति को बदल देगी, बल्कि वह दुनिया में कई तरह के खतरे लेकर भी आएगी। लेकिन इस समझौते के बाद साफ है कि दुनिया इस प्रौद्योगिकी के खतरे के प्रति सचेत हो रही है। यही वजह है कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने कहा है कि इससे हमारी भावी पीढ़ियों का दीर्घकालिक भविष्य सुनिश्चित होगा। इस बैठक को संबोधित करते हुए भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने भारत की इस संदर्भ में दृष्टि का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रति भारत का नजरिया स्पष्ट है। वह इसके सुरक्षा और खतरों के प्रति भी सचेत है। चीन ने भी ऐसी ही राय जाहिर की है।
भारत और चीन के संदर्भ में यह सुरक्षा नजरिया और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। इसकी वजह यह है कि भारत और चीन स्वास्थ्य देखभाल, खाद्य सुरक्षा और नीतिगत स्थिरता के मसले समेत कई क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की ताकत को ना सिर्फ तौल रहे हैं, बल्कि उसकी क्षमता के इस्तेमाल की नई राह खोज रहे हैं। ब्रिटिश स्टैंडर्ड इंस्टीट्यूशंस यानी बीएसआई की इसी महीने प्रकाशित रिपोर्ट मे कहा गया है कि भारत में सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने वाले लोगों में 64 प्रतिशत एआई का इस्तेमाल कर रहे हैं, वहीं चीन में यह संख्या करीब 70 फीसद है। इसी रिपोर्ट के मुताबिक, एआई को अपनाने की दर यूरोप में कम है। जो करीब तीस फीसद है। एआई के इस्तेमाल में जापान का स्थान सबसे कम है। इसी रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि साल 2030 तक 63 प्रतिशत चीनी लोग अपने घर पर एआई का उपयोग करने में सक्षम होंगे। इसमें दो राय नहीं कि एआई क्रांतिकारी बदलाव लाने वाली तकनीक है। लेकिन इसका फायदा तभी उठाया जा सकेगा, जब इसके मानवीय मानदंड स्थापित किए जाएं। अन्यथा यह तकनीक विनाशकारी भी साबित हो सकती है। चीन और भारत, जहां मानव श्रम दुनिया में सबसे ज्यादा है, इस तकनीक का इस्तेमाल सोच-समझकर ही किया जाना होगा। ब्लैचले घोषणा की इसी सोच-समझ का नतीजा कही जा सकती है।
(उमेश चतुर्वेदी, वरिष्ठ भारतीय पत्रकार)