शुक्रवार 29 मार्च 2024 को खत्म हो रहा चार दिनों का बोआओ फोरम फॉर एशिया दक्षिणी चीन के हाईनान प्रांत में जारी है। बोआओ फोरम फॉर एशिया एक गैर-सरकारी और गैर-लाभकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। 2001 में स्थापित यह संगठन अब एशिया और दूसरे महाद्वीपों की सरकारों, औद्योगिक संगठनों और व्यापार मंडलों के साथ ही अकादमिक क्षेत्रों के अगुआ लोगों के लिए एक ऐसा मंच बन चुका है, जिसके जरिए एशिया और दूसरे महाद्वीपों के महत्वपूर्ण मुद्दों चर्चा होती है। इस बार के सम्मेल के एजेंडे में वैश्विक सुरक्षा, विश्व अर्थव्यवस्था, विज्ञान-तकनीकी नवाचार और कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी एआई का प्रभाव है। जिस पर विभिन्न सत्रों में चर्चा हुई है या हो रही है।
इस फोरम की सालाना रिपोर्ट सम्मेलन के पहले दिन यानी 26 मार्च को जारी की गई, जिसमें एशिया को लेकर बेहद उम्मीद जताई गई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया का आर्थिक विकास तो तेज रहेगा ही, क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण की गति भी मजबूती से आगे बढ़ती रहेगी। इस समय जब वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं लगातार हिचकोले खा रही हैं, एशिया की आर्थिक गति की मजबूती की उम्मीद ना सिर्फ एशिया, बल्कि दुनिया के लिए उम्मीदभरी कही जा सकती है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि एशियाई अर्थव्यवस्था को भले ही बाहरी आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा हो, इसके बावजूद, एशियाई अर्थव्यवस्था आने वाले वर्षों में अपेक्षाकृत उच्च विकास दर बनाए रखेगी।
बोआओ फोरम फॉर एशिया की 2024 की सालाना बैठक के दौरान जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मजबूत खपत और सक्रिय राजकोषीय नीतियों की मदद के चलते एशियाई अर्थव्यवस्था की विकास दर साल 2024 से अधिक रहने की उम्मीद है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, यह विकास दर पिछले साल की तुलना में साढ़े चार फीसद ज्यादा होगी। जाहिर है कि इससे एशिया की आर्थिकी के मजबूत होने और एशिया के लोगों की हालात बेहतर होने की उम्मीद बढ़ती है।
बोआओ फोरम फॉर एशिया के महासचिव ली पाओतोंग का कहना है कि मौजूदा वर्ष यानी साल 2024-25 के लिए यह रिपोर्ट उम्मीद जताती है। इस वर्ष फोरम के सालाना सम्मेलन का विषय ‘एशिया और विश्व: सामान्य चुनौतियां, साझा जिम्मेदारियां’ है। महासचिव का कहना है कि चूंकि आज दुनिया के सामने चुनौतियां पहले की तुलना में कहीं ज्यादा जटिल और विविध हैं। लिहाजा इनका सामाना सिर्फ मिलकर ही किया जा सकता है। इसके लिए एशिया के देशों को एक-दूसरे की मदद करनी होगी और एक-दूसरे को मजबूत सहयोग देना होगा और इसके साथ ही अपनी जिम्मेदारियां गंभीरता से निभानी होंगी। तभी अंतरराष्ट्रीय समुदाय दुनिया को शांति और समृद्धि की राह पर आगे बढ़ा सकता है।
फोरम की सालाना रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया में क्षेत्रीय एकीकरण लगातार आगे बढ़ रहा है। यह एकीकरण राजनीतिक से कहीं ज्यादा आर्थिक है। शायद यही वजह है कि फोरम के अधिकारियों का मानना है कि क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी या आरसीईपी ने अंतर-क्षेत्रीय व्यापार और निवेश के विकास के साथ-साथ औद्योगिक और आपूर्ति श्रृंखलाओं के बीच घनिष्ठ संबंधों के समर्थन के जरिए एशियाई देश आगे बढ़ रहे हैं। बहरहाल फोरम का मकसद है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में आई अस्थिरता के नकारात्मक प्रभावों को अंतरराष्ट्रीय पर कम करने के लिए एक-दूसरे का ना सिर्फ साथ दिया जाए, बल्कि सहूलियतों से महरूम दुनिया की बड़ी जनसंख्या को सहयोग दिया जाए।
तीन साल पहले आई कोरोना की महामारी ने दुनिया की आर्थिकी और समाज व्यवस्था को गहरी चोट पहुंचाई थी। लेकिन अब दुनिया महामारी की काली छाया से उबर रही है। फोरम के महासचिव ली पाओतोंग ने भी इसे स्वीकार किया है। उन्होंने कहा है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे महामारी की छाया से उभर रही है, और तकनीकी नवाचार नए विकास चालक ला रहा है। फोरम को उम्मीद है कि इस साल की वार्षिक बैठक में चर्चा के माध्यम से सभी पक्षों का ज्ञान प्राप्त होगा संघनित किया जा सकता है, और कठिनाइयों को दूर करने और बेहतर भविष्य बनाने के लिए एशिया और शेष विश्व की शक्तियों को जोड़ा जा सकता है।
बोआओ फोरम फॉर एशिया की इस वर्ष की सालाना बैठक में 60 से अधिक देशों और क्षेत्रों के लगभग 2,000 प्रतिनिधि के साथ ही और लगभग 40 देशों 1,100 से अधिक पत्रकार भाग ले रहे हैं। भागीदारों की इतनी बड़ी संख्या की हिस्सेदारी से साफ है कि इस फोरम का कितना महत्व है और दुनिया किस तरह इसमें दिलचस्पी ले रही है। भारत भी बोआओ फोरम का सदस्य देश है और इसका जबर्दस्त समर्थक भी है। भारत में, आईटी उद्योग ने हाल के दशकों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में अहम् भूमिका निभाई है। हालाँकि, भारी ऊर्जा लागत और दूसरी वजहों से भारत हार्डवेयर विनिर्माण क्षमताओं में पीछे है, इसी को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ‘मेक इन इंडिया’और ‘डिजिटल इंडिया’के अपने एजेंडे को हासिल करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास कर रही है। बोआओ फोरम फॉर एशिया के जरिए भारत इस विषय पर भी विचार के बाद नई दृष्टि हासिल करे की कोशिश कर रहा है।
(वरिष्ठ भारतीय पत्रकार-उमेश चतुर्वेदी)