China and America : नई अमेरिकी सरकार सत्ता में आ रही है और विश्व जनमत का ध्यान चीन-अमेरिका संबंधों पर केंद्रित हो गया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि नई अमेरिकी सरकार चीन के साथ अपनी नीतियों में क्या बदलाव करती है, इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा। लेकिन, चीन-अमेरिका संबंधों को किस दिशा में विकसित होना चाहिए, इसके प्रति अलग-अलग लोगों का दृष्टिकोण पूरी तरह से अलग है। यह उनके पूरी तरह से अलग मूल्यों से निर्धारित होता है।
कुछ पश्चिमी राजनीतिज्ञों का मानना है कि दुनिया भर के देशों के पास केवल एक ही विकल्प है, और वह है अपनी राजनीतिक व्यवस्था और आर्थिक विकास मॉडल को पूरी तरह से पश्चिमी मूल्यों के अनुसार निर्धारित करना, अन्यथा उन्हें बुरी ताकतों के रूप में माना जाना चाहिए। गैर-पश्चिमी देश या तो पश्चिमी देशों के जागीरदार बन जायेंगे या पश्चिम के दुश्मन बन जायेंगे। औपनिवेशिक युग से, पश्चिमी ताकतों ने हमेशा पिछड़े हुए देशों के साथ इसी दृष्टिकोण से व्यवहार किया था। यह कहा जा सकता है कि मानव इतिहास में कई बार हुई ऐतिहासिक त्रासदियों की वैचारिक जड़ें कुछ लोगों के दिलों में गहरे बैठा हुआ जातीय श्रेष्ठता और हीनता का सिद्धांत है।
उधर, पूर्वी सभ्यता में “विविधता में सद्भाव” और “वसुधैव कुटुम्बकम्” की अवधारणाएं स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बाहर नहीं करती हैं, जो मानव जाति के लिए साझा भविष्य वाले समुदाय के विचारधारा के समान ही होता है। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका दुनिया की एकमात्र महाशक्ति बन गया, हालांकि चीन तेजी से उभरा और वैश्विक राजनीति, अर्थव्यवस्था और उसकी प्रौद्योगिकी जैसे कई क्षेत्रों में अमेरिका के साथ प्रतिस्पर्धा शुरू होने लगी। अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए अमेरिका ने चीन के खिलाफ व्यापार युद्ध शुरू किया और चीन पर तकनीकी नाकाबंदी लगाने की पूरी कोशिश की। अमेरिका का सबसे बुनियादी मनोविज्ञान यह है कि यह किसी को भी अपने से आगे निकलने की अनुमति नहीं देता है। लेकिन, चीन के विकास की शक्ति उसके हजारों वर्षों के सांस्कृतिक गौरव से उपजी है। चीन ने आधुनिक समय में उत्पीड़न से मुक्त होने के तुरंत बाद अपना राष्ट्रीय कायाकल्प का अभियान शुरू कर दिया है।
चीन ने हमेशा शांतिपूर्ण विकास के मार्ग का पालन किया है। सुधार और खुलेपन के पिछले 40 वर्षों में, चीन ने आर्थिक निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया है और अंतरराष्ट्रीय सहयोग में सक्रिय रूप से भाग लिया है, जिससे अन्य देशों को विकास के बड़े अवसर भी प्राप्त हुए हैं। अब चीन दुनिया के 100 से अधिक देशों का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, और अमेरिका ने भी चीन में बड़े पैमाने पर निवेश किया है। दुनिया भर के 170 से अधिक देशों ने चीनी निवेश और व्यापार का स्वागत किया है। “बेल्ट एंड रोड” पहल के प्रस्तावित होने के बाद से चीन ने 150 से अधिक देशों और 30 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ “बेल्ट एंड रोड” के संयुक्त निर्माण पर 200 से अधिक सहयोग दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए हैं। और चीन के इन देशों के साथ आयात निर्यात की मात्रा 22 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गई है। 146 से अधिक देशों को हाई-स्पीड रेलवे, बंदरगाहों, ऊर्जा और अन्य क्षेत्रों सहित चीन के बुनियादी ढांचे के निवेश से लाभ हुआ है।
कुछ अमेरिकी राजनेता चाहते हैं कि चीन सदा के साथ अंतरराष्ट्रीय औद्योगिक आपूर्ति श्रृंखला के मध्य और निचले सिरे पर बना रहेगा और हमेशा अमेरिका को सस्ते उपभोक्ता सामान उपलब्ध कराएगा। जबकि उच्च-स्तरीय प्रौद्योगिकी और वित्तीय आधिपत्य हमेशा अमेरिका के हाथों में रहना चाहिए। यह चीन को अस्वीकार्य है। चीन का संयुक्त राज्य अमेरिका की जगह लेने का कोई इरादा नहीं है, लेकिन चीन अमेरिका का जागीरदार बनने के लिए भी तैयार नहीं होगा। सबसे बड़े विकासशील देश और सबसे बड़े विकसित देश के रूप में, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए एकमात्र सही विकल्प सहयोग करना है। शांतिपूर्ण विकास और जीत-जीत सहयोग चीन-अमेरिका संबंधों को विकसित करने का सबसे अच्छा तरीका है।
(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)