क्या आप जानते हैं कि हर साल हम सब मिलकर 2 अरब टन से भी ज़्यादा कचरा बना देते हैं? वर्ल्ड बैंक द्वारा छापे गए इन आंकड़ों से पता चलता है कि इस सारे कचरे का निपटारा करना कितना मुश्किल है। कचरे को सही तरीके से फेंकना वाकई बहुत ज़रूरी है। यह सिर्फ़ चीज़ों को साफ रखने के लिए जरूरी नहीं है बल्कि यह हमारी ज़रूरत की चीज़ों को बचाने और लोगों और प्रकृति पर बुरे प्रभावों को रोकने के लिए बेहद ज़रूरी है।
इस ग्रीन पहल में दुनिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले देश- चीन और भारत- अपना योगदान पूरे मन से दे रहे हैं। हाल ही में चीन और भारत दोनों देशों में बच्चों की गर्मियों की छुट्टिया खत्म हुई हैं। जाहिर है बच्चों को गर्मियों की छुट्टियों में होमवर्क भी मिला ही होगा। पर क्या आप जानते हैं कि इस बार इस होमवर्क में खास क्या था… इस बार बच्चों को कबाड़ का इस्तेमाल करके अपना प्रोजेक्ट बनाना था।
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब बच्चों को कूड़े-कचरे में से काम की चीज़ें ढूंढकर अपना होमवर्क पूरा करना हो, लेकिन ज़रूरी बात यह है कि भारत और चीन, जोकि सबसे बड़ी आबादी वाले देश हैं, उन्होंने ज़मीनी स्तर पर बच्चों में जागृति पैदा करना शुरू कर दिया है। इस गर्मी में, चीन और भारत के बच्चे पूरी तरह से घरेलू कचरे से बने अनूठे प्रोजेक्ट के साथ स्कूल लौटे, जिसमें दिखाया गया कि कैसे अभिनव समाधान जमीनी स्तर पर शुरू हो सकते हैं।
आइए… पहले चीन की बात करते हैं। चीन में बच्चों की गर्मियों की छुट्टियां जुलाई और अगस्त के महीने में होती हैं। इस बार की छुट्टियों में चीन के एक स्कूल ने यह मुहिम चलाई कि बच्चों को इन छुट्टियों में दूध के खाली डब्बे या थैलियां इकट्ठी करनी होंगी। और इस कचरे का इस्तेमाल कर बच्चों को अपना प्रोजेक्ट बनाना होगा। इसके पीछे स्कूल ने यह मकसद बताया कि आमतौर पर बच्चे बाज़ार से नया सामान खरीदकर अपना होमवर्क पूरा करते हैं, लेकिन इस पहल से उन्हें फिज़ूलखर्ची करने से बचाया जा सकेगा और साथ ही कचरे का सही अपयोग भी किया जा सकेगा। दूध के डब्बों के अलावा खाली पेन या उनकी रीफिल आदि कुछ भी कचरा बच्चे अपने घर से ही जुटा सकते हैं।
इस परियोजना के पीछे का उद्देश्य केवल कचरा प्रबंधन से कहीं आगे है। बच्चों को घर पर पहले से मौजूद सामग्री के साथ काम करने की आवश्यकता होने से, यह पहल उन्हें संसाधनशीलता और स्थिरता के मूल्य के बारे में सिखाती है। माता-पिता ने इस प्रयास की प्रशंसा की है, उन्होंने कहा कि यह उनके बच्चों को स्वस्थ आदतें डालने के साथ-साथ पर्यावरण के प्रति अधिक जागरूक बनने में मदद करता है।
इसके अलावा स्कूल यह सुनिश्चित कर सकता है कि उनके स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे पौष्टिक दूध पी रहे हैं। यह काफी कारगर और आसान तरीका है। पूर्वी चीन के चच्यांग प्रांत के एक प्राथमिक स्कूल ने तो एक प्रतियोगिता भी आयोजित की, जिसके तहत सबसे ज्यादा दूध के डिब्बे इकट्ठे करने वालों को एक रिसाइक्लिंग फैक्ट्री का निःशुल्क दौरा करवाया जाएगा।
सुनने में बेहद अजीब लगे लेकिन स्कूल की इस पहल ने बच्चों के साथ-साथ आम लोगों को भी कचरा के निपटान के प्रति जागरुक किया है और यूं ही नज़रअंदाज कर दिए जाने वाले कचरे को भी काम में लाने का नया तरीका खोजा है। अब बात भारत की करें तो यहां भी इस साल बच्चों को कचरे का सही इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग पर खासा ज़ोर दिया गया। भारत के केंद्रीय शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने बच्चों को अपने प्रोजेक्ट में घर के ही कचरे से सामान ढूंढकर प्रोजेक्ट बनाने का काम दिया। इसके अलावा बच्चों को कचरे के निदान के लिए जागरुक करने वाले काम भी दिए गए, ताकि बच्चों को भी कचरे के निपटारे के बारे में बताया जा सके।
इन दिनों भारत के कई नामी-गिरामी स्कूल ज़ीरो वेस्ट पर फोकस कर रहे हैं, जिसमें ऐसी चीज़ों के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया जा रहा है, जिनसे कचरा पैदा ही न हो। इसका उद्देश्य छात्रों में रचनात्मकता को प्रोत्साहित करते हुए उचित कचरा निपटान और रीसाईकिल के बारे में जागरूकता पैदा करना है। इन कार्यों को अपने पाठ्यक्रम में शामिल करके, स्कूल पर्यावरण के प्रति चेतना की नींव रखने की उम्मीद करते हैं।
हालांकि बच्चों के होमवर्क प्रोजेक्ट एक छोटे से योगदान की तरह लग सकते हैं, लेकिन वे पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा हैं। भारत और चीन दोनों ही प्रमुख वैश्विक खिलाड़ी स्थिरता के महत्व के बारे में एक शक्तिशाली संदेश भेज रहे हैं। इतनी कम उम्र में बच्चों को शामिल करके, ये देश पर्यावरण के प्रति जागरूक नागरिकों की एक नई पीढ़ी को बढ़ावा दे रहे हैं।
(अखिल पाराशर, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)