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चीन-भारत संबंधों का एक मात्र सही रास्ता है मैत्रीपूर्ण सहयोग 

चीन के बारे में विषय हमेशा यहां के मीडिया का फोकस है। हालाँकि, भारत में कई लोगों के चीन के बारे में गलत विचार हैं, वे ग़लती से चीन को भागीदार के बजाय ख़तरा मानते हैं। यह सच है कि चीन और भारत के बीच सीमा मुद्दे हैं, लेकिन निर्विवाद तथ्य यह है कि दोनों.

चीन के बारे में विषय हमेशा यहां के मीडिया का फोकस है। हालाँकि, भारत में कई लोगों के चीन के बारे में गलत विचार हैं, वे ग़लती से चीन को भागीदार के बजाय ख़तरा मानते हैं। यह सच है कि चीन और भारत के बीच सीमा मुद्दे हैं, लेकिन निर्विवाद तथ्य यह है कि दोनों के बीच हजारों वर्षों से मैत्रीपूर्ण संबंध बने रहते हैं। तथाकथित सीमा युद्ध भी सीमावर्ती क्षेत्रों तक ही सीमित रहे हैं, दोनों देशों के बीच कोई वास्तविक रणनीतिक शत्रुता नहीं है।

सुधार और खुलेपन के बाद चीन ने तेजी से प्रगतियां प्राप्त की हैं, लेकिन चीन की प्रगति वास्तव में केवल सुधार और खुलेपन के कारण नहीं है, चीन की ताकत सौ से अधिक वर्षों से राष्ट्रीय मुक्ति के लिए चीनी जनता की महत्वाकांक्षा से उत्पन्न होती है। चीन के दशकों के लिए प्रयासों से चीन अमेरिका के बाद दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बन गया है। अब न केवल विनिर्माण क्षेत्र में, बल्कि उच्च तकनीक क्षेत्र में भी चीन और अमेरिका के बीच अंतर कम होता जा रहा है। ऐसे माहौल में, चीन और भारत को दोस्ती की परंपरा का पालन करते हुए, शांति के लिए हाथ मिलाकर उनके मुद्दों को हल करना चाहिये, जो एक-दूसरे और पूरी दुनिया की शांति के अनुकूल भी है। 

चीन का उदय एशिया के उदय का हिस्सा है। चीन से पहले जापान, दक्षिण कोरिया और अन्य पूर्वी एशियाई देशों और क्षेत्रों ने आधुनिकीकरण हासिल कर लिया। चीन के उदय के बाद, संपूर्ण प्रशांत पश्चिमी तट क्षेत्र एक आधुनिक आर्थिक क्षेत्र बनेगा। इसके साथ-साथ भारत के उदय से पूरी एशिया दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्र बन जाएगा। वर्तमान में, भारत एक उपयुक्त अंतर्राष्ट्रीय वातावरण का सामना कर रहा है। अमेरिका चीन को दबाने के लिए कुछ उच्च तकनीक उद्योगों को भारत में स्थानांतरित करने को तैयार है, जिससे भारत की तीव्र वृद्धि के लिए परिस्थितियाँ तैयार हुई हैं। पिछले 10 साल भारत के लिए सबसे तेज़ विकास हुआ।

दक्षिण एशियाई उपमहाद्वीप वास्तव में एक स्वतंत्र क्षेत्र है, और भारत स्वाभाविक रूप से इस क्षेत्र का केंद्र है। इतिहास में कोई भी बाहर शक्ति इस क्षेत्र में पैर जमाने में सक्षम भी नहीं हो पाया। बाहर से आए विजेता अंततः भारतीय सभ्यता में डूब गए। पुराने इतिहास में सिकंदर और चंगेज खान ने सिंधु नदी और मध्य एशिया तक विजय प्राप्त की थी, लेकिन उन्हों ने अंततः भारत पर हमला करना छोड़ दिया। भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवादियों का शासन केवल शासन तक ही सीमित था, यह भारतीय राष्ट्र की सभ्यता को नष्ट नहीं कर सका।

इसलिए, रणनीतिक रूप से भारतीय उपमहाद्वीप हमेशा सुरक्षित रहता था और उसे बाहरी खतरों का सामना नहीं करना पड़ता था। इतिहास में शक्तिशाली देशों ने ऐसा नहीं किया था, शांतिप्रिय चीन की तो बात ही छोड़ दें। चीन ने कभी भी भारत को दुश्मन नहीं माना है, सीमा संघर्ष को छोड़कर चीन और भारत के बीच कभी वास्तविक युद्ध नहीं हुआ। पिछले दो हजार वर्षों के इतिहास में, दोनों देशों के बीच अनगिनत भिक्षुओं और व्यापारिक यात्रियों ने भिन्न भिन्न बाधाओं को दूर कर, सांस्कृतिक और आर्थिक आदान-प्रदान के लिए अथक प्रयास किया। उनकी आत्मा मानव सभ्यता के भविष्य का प्रतिनिधित्व करती है।

 (साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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