भविष्य में ऊर्जा का विकास किस दिशा में होगा

1970 के दशक से ही विश्व तेल उत्पादन को संकट का सामना करना पड़ता है। उस समय लोगों को यह चेतावनी दी गई कि दुनिया के तेल संसाधन 50 वर्षों में समाप्त हो जायेंगे।

ऊर्जा आधुनिक समाज के संचालन का आधार है। ऊर्जा के बिना, हमारे चारों ओर स्ट्रीट लाइट से लेकर मशीनों तक सब कुछ संचालित नहीं हो सकता है, और लोगों का जीवन अंधकारमय मध्य युग में लौट जाएगा। वर्तमान में मानव समाज के लिए मुख्य ऊर्जा कोयला, तेल, परमाणु ऊर्जा और कुछ हरित ऊर्जा पर निर्भर हैं। जिनमें तेल सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, अधिकांश कारें, रेलगाड़ियाँ, विमान और जहाज़ तेल ईंधन पर निर्भर हैं। लेकिन एक ओर तेल का प्रयोग इस के भंडार से सीमित है, दूसरी ओर तेल ईंधन द्वारा उत्पादित ग्रीनहाउस गैसें भी सीधे तौर पर मानव जाति के अस्तित्व को खतरे में डालती हैं।

1970 के दशक से ही विश्व तेल उत्पादन को संकट का सामना करना पड़ता है। उस समय लोगों को यह चेतावनी दी गई कि दुनिया के तेल संसाधन 50 वर्षों में समाप्त हो जायेंगे। पर 50 साल बीत चुके हैं और दुनिया का तेल भंडार अभी भी लगभग 200 बिलियन से 300 बिलियन टन तक होता है। 2012 से पहले, संयुक्त राज्य अमेरिका एक तेल आयातक देश था, पर आज तकनीकी सुधारों के माध्यम से अमेरिका का वार्षिक शेल तेल उत्पादन 414 मिलियन टन तक पहुंच गया है और वह एक तेल निर्यातक बन गया है। अब अमेरिका दुनिया में सबसे बड़ा तेल उत्पादन वाला देश बनने के लिए शेल तेल क्रांति पर निर्भर है।

दरअसल, दुनिया में शेल तेल के भंडार बहुत प्रचुर हैं। न केवल अमेरिका, बल्कि रूस, चीन और भारत में भी शेल तेल के भंडार प्रचुर मात्रा में हैं। लेकिन अमेरिका को छोड़कर, दुनिया के किसी भी अन्य देश ने वास्तव में शेल तेल का दोहन शुरू नहीं किया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अमेरिका में प्राकृतिक रूप से शेल तेल के दोहन के लिए उत्कृष्ट स्थितियाँ हैं, जबकि चीन जैसे देशों में शेल तेल अधिक गहराई में वितरित किया जाता है और ज्यादातर घनी आबादी वाले क्षेत्रों में वितरित किया जाता है। इन क्षेत्रों में शेल तेल के विकास से सतह के पर्यावरण और भूजल को गंभीर नुकसान हो सकता है।

हाल के वर्षों में, दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन ने हम पर गहरा प्रभाव छोड़ा है। ग्लोबल वार्मिंग पैदा करने वाली ग्रीनहाउस गैसों के बारे में वैज्ञानिकों की चेतावनी निराधार नहीं है। इसलिए, कोयले और तेल जैसे जीवाश्म ईंधन के उपयोग को यथासंभव कम करना और जलविद्युत, पवन, सौर और ज्वारीय ऊर्जा से हरित ऊर्जा के अनुपात को बढ़ाने का प्रयास करना पेरिस जलवायु सम्मेलन में विभिन्न देशों द्वारा सर्वसम्मति से किया गया एक समझौता है। साथ ही, हमें जितनी जल्दी हो सके परमाणु संलयन ऊर्जा के तकनीकी विकास में सफलता हासिल करनी पड़ेगी। इसी के बाद ही मानव जाति ऊर्जा समस्या को पूरी तरह से हल कर लेगी। इससे पहले, थोरियम-आधारित परमाणु ऊर्जा संयंत्रों जैसे स्वच्छ परमाणु विखंडन ऊर्जा स्रोतों का उपयोग भी ऊर्जा आपूर्ति के लिए एक उपयोगी पूरक प्रदान करेगा।

पिछले साल चीन के गांसु प्रांत में निर्मित थोरियम-आधारित रिएक्टर ने आधिकारिक तौर पर संचालन शुरू कर दिया है। जिसे भी दुनिया का सबसे उन्नत थोरियम-आधारित रिएक्टर माना जाता है। वर्तमान में, दुनिया के सिद्ध थोरियम संसाधन मुख्य रूप से चीन और भारत में हैं। अकेले चीन का 300,000 टन थोरियम भंडार भविष्य में 20,000 वर्षों तक मानव जाति की ऊर्जा जरूरतों की गारंटी दे सकता है। इसके अलावा, चीन के थोरियम-आधारित परमाणु रिएक्टरों का लघुकरण डिजाइन भी शुरू किया गया है। 2029 में, चीन वाणिज्यिक संचालन के लिए दुनिया का पहला लघु थोरियम-आधारित पिघला हुआ नमक परमाणु रिएक्टर बनाएगा। भविष्य में, इस प्रकार के परमाणु रिएक्टर का विशाल जहाज पर उपयोग किया जा सकता है।

(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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