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बेहतरी की ओर बढ़ रहे भारत-चीन संबंध

भारत और चीन की ओर से एक-दूसरे के लिए जिस तरह की हाल के दिनों में बयानबाजी हुई है, उससे लगता है कि दोनों देशों के रिश्ते बेहतरी की ओर लगातार आगे बढ़ रहे हैं। इसका हालिया मुलाहिजा तब हुआ, जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रिसर्चर एवं पाडकास्टर लेक्स फ्रिडमैन को.

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भारत और चीन की ओर से एक-दूसरे के लिए जिस तरह की हाल के दिनों में बयानबाजी हुई है, उससे लगता है कि दोनों देशों के रिश्ते बेहतरी की ओर लगातार आगे बढ़ रहे हैं। इसका हालिया मुलाहिजा तब हुआ, जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रिसर्चर एवं पाडकास्टर लेक्स फ्रिडमैन को दिए करीब तीन घंटे के इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने चीन की प्रशंसा की। मोदी पिछले साल अप्रैल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिकी पत्रिका न्यूजवीक को दिए इंटरव्यू में भी चीन को लेकर सकारात्मक संदेश दिए थे। इसके बाद अमेरिकी पॉडकास्टर से की गई बातचीत ने चीन और भारत के रिश्तों को एक तरह से नया आयाम दिया है। अच्छे और बेहतर पड़ोसी होने के नाते चीन का इस पर खुश होना स्वाभाविक था। चीन की ओर से आई प्रतिक्रिया भी जबरदस्त रही। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग का यह कहना कि चीनी ड्रैगन और भारतीय हाथी के सामंजस्यपूर्ण नृत्‍य की प्रतीक्षा चीन के उत्साह का ही वर्णन करता है। 

अमेरिकी पाडकास्टर को दिए इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने जो कहा, उसे देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा है, “भारत और चीन के बीच संबंध कोई नई बात नहीं है। दोनों देशों की संस्कृतियां और सभ्यताएं प्राचीन हैं। आधुनिक दुनिया में भी, वे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यदि आप ऐतिहासिक अभिलेखों को देखें, तो सदियों से भारत और चीन ने एक-दूसरे से सीखा है। साथ मिलकर, उन्होंने हमेशा किसी न किसी तरह से वैश्विक भलाई में योगदान दिया है।”

प्रधानमंत्री मोदी की यह टिप्पणी चीन और भारत के रिश्ते बेहतर बनाने की दिशा में पहला कदम नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की रूसी शहर कजान में पिछले साल की मुलाकात के बाद भारत और चीन के रिश्ते लगातार बेहतरी की ओर बढ़ रहे हैं। हाल ही में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने भी भारत को लेकर अपनी बेहतर राय जाहिर की थी। जिसका भारतीय विदेश मंत्रालय ने स्वागत किया था। इस कड़ी में भारतीय प्रधानमंत्री मोदी की ताजा टिप्पणी ने एक तरह से भारत-चीन के रिश्तों को बेहतरी की ओर तेजी से बढ़ा दिया है। मोदी ने भारत- चीन के आपसी और गहरे रिश्तों और ऐतिहासिक संबंधों की भी इस पाडकास्ट में चर्चा की। वैसे चीन और भारत के रिश्तों की एक बड़ी और ऐतिहासिक कड़ी महात्मा गौतम बुद्ध हैं। यह ऐसी कड़ी हैजिसकी बुनियाद पर दोनों देशों के रिश्तों को और बेहतर बनाया जा सकता है। 

भारत-चीन संबंधों को बेहतर बनाने की दिशा में नई दिल्ली यह समझाने की कोशिश करती रही है कि जब तक दोनों देशों के बीच का सीमा विवाद और उससे उपजा तनाव खत्म नहीं हो जाता, तब तक संबंध बेहतर नहीं हो सकते हैं। लेकिन चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने पिछले दिनों जब कहा कि एशिया की दोनों आर्थिक महाशक्तियों को अपने विवाद भुलाकर साथ आना चाहिए, तब से हालात बदलने लगे हैं। वैसे भी जिस तरह ट्रंप लगातार चीन को घेरने की कोशिश कर रहे हैं और आयात पर टैरिफ बढ़ाने की बात कर रहे हैं, उससे चीन ही नहीं भारत को परेशान कर दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप लगातार चीन और भारत से आयातित होने वाली चीजों पर टैरिफ बढ़ाने की बात कर रहे हैं। इसका निश्चित तौर पर दोनों देशों की आर्थिकी पर असर पड़ सकता है। अगर दोनों देश कम से कम आर्थिक मोर्चे पर साथ आने को तैयार दिखें तो अमेरिका की धमकियां और उसके कदम बेअसर साबित हो सकते हैं। वैसे दोनों देशों के कारोबारी रिश्ते जिस तरह बढ़ते रहे हैं, दोनों के बीच जारी सीमाई तनाव के बावजूद आपसी व्यापारिक  संबंध मजबूत बने हुए हैं, वह बेहतर होते रिश्तों की ही कहानी कह रहे हैं। भारतीय प्रधानमंत्री मोदी और चीनी विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया से जाहिर है कि दोनों देशों के बीच सद्भावना की नई इबारत लिखी जा रही है। अगर यह स्थिति और बेहतर होती है ति निश्चित है कि भारत में और अधिक चीनी निवेश का रास्ता खुल सकता है ।  जिसका फायदा भारत को तो मिलेगा ही, चीन को भी होगा। वैसे शांगहाई सहयोग संगठन के साथ ही एशियाई विकास बैंक और ब्रिक्स जैसे संगठनों में नई दिल्ली और पेइचिंग साथ-साथ काम कर ही रहे हैं। भारत आतंकवाद का मुकाबला करता रहा है, वह आतंकवाद का विरोधी भी है, लेकिन उसका मुकाबला करने के लिए बहुपक्षवादी वैचारिकी को बढ़ावा देने का वह विरोधी रही है। इस मामले में चीन की भी सोच कमोबेश वैसी ही है। इसलिए माना जा सकता है कि दोनों देश इन तथ्यों के आलोक में अपने रिश्तों को देखने लगे हैं। भारतीय प्रधानमंत्री मोदी और चीनी विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया, इसी सोच का परिणाम नजर आती है।

पश्चिमी दुनिया के दिग्गज भी मानते हैं कि दोनों एशियाई दिग्गज देशों चीन और भारत के बीच स्थायी शांति के परिणाम दूरगामी होंगे। इससे कुछ हद तक वाशिंगटन चिंतित हो सकता है। लेकिन हाल के दिनों में भारत ने अमेरिका को लेकर जो संतुलित नीति अख्तियार की है, उससे उम्मीद है कि वाशिंगटन इस नई पहल की राह में बड़ी बाधा नहीं बन सकता। दोनों देशों के करोड़ों लोगों की आर्थिक स्थिति सुधारनी है, गरीबी का समूल नाश करना है और शांति और स्थायीत्व की दिशा में आगे बढ़ना है तो तय है कि दोनों देश विवादित मुद्दों को परे रखते हुए अपने आर्थिक और ऐतिहासिक रिश्तों को बेहतर बनाते हुए आगे बढ़ाते रहें। इससे एशिया की दुनिया और खूबसूरत हो सकती है। 

(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग) (लेखक— उमेश चतुर्वेदी)

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