भारत: स्वतंत्र विकास रणनीति का पालन करना जारी रखेगा

अमेरिका और भारत के बीच संपन्न क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी इनिशिएटिव(iCET) के अनुसार, दोनों देश रक्षा, अर्धचालक, अंतरिक्ष तथा एआई आदि में सहयोग को मजबूत करेंगे। अमेरिका का उद्देश्य उच्च तकनीक वाली औद्योगिक श्रृंखला में चीन की स्थिति को बदलने के लिए भारत का सहारा लेना है। पर क्या यह भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी.

अमेरिका और भारत के बीच संपन्न क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी इनिशिएटिव(iCET) के अनुसार, दोनों देश रक्षा, अर्धचालक, अंतरिक्ष तथा एआई आदि में सहयोग को मजबूत करेंगे। अमेरिका का उद्देश्य उच्च तकनीक वाली औद्योगिक श्रृंखला में चीन की स्थिति को बदलने के लिए भारत का सहारा लेना है। पर क्या यह भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के लिए अनुकूल है, इस पर अभी अभी संदेह लगता है। अमेरिका तकनीकी रूप से सबसे अधिक उन्नत देश है, फिर भी इसे अनुसंधान और विकास की पूंजी और बाजार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। चीन को दबाने से अनिवार्य रूप से पूरी अंतरराष्ट्रीय औद्योगिक श्रृंखला और आपूर्ति श्रृंखला पर नुकसान पहुंचाया जाएगा।

इसलिए अमेरिका एक नई औद्योगिक श्रृंखला और आपूर्ति श्रृंखला बनाने और भारत को इस में एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाने की कोशिश कर रहा है। और इसी औद्योगिक और आपूर्ति श्रृंखला में शामिल होने के बाद भारत भी उस के सामरिक प्रभाव से बच नहीं पाएगा। अमेरिका के पास अब बड़े पैमाने पर विनिर्माण को स्वीकार करने के लिए काफी कर्मचारी और बुनियादी ढांचा नहीं है। ज्यादा उच्च-तकनीकी उद्योगों का अमेरिका में स्थानांतरण करना असंभव है। इसलिए, भारत अमेरिका की दीर्घकालिक रणनीति का लक्ष्य बन गया है। हालाँकि, कई मुद्दों पर भारत का रुख अमेरिका के अनुरूप नहीं है। यूएस-इंडिया साइंस एंड टेक्नोलॉजी इनिशिएटिव के मुताबिक रूसी हथियारों पर भारत की निर्भरता को कम करने के लिए अमेरिका और भारत सहयोग करेगा। इस रणनीति को हासिल करने के लिए, अमेरिका भारत को कुछ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण करेगा।

उधर भारत की सभी सरकारों ने स्वतंत्र विकास पथ को सबसे कीमती चीज माना है। भारतीय सरकार की हालिया योजना आत्मनिर्भर भारत में भी इसे परिलक्षित है। भारत का राष्ट्रीय हित वैश्विक मूल्य श्रृंखला के निचले छोर से उन्नयन में निहित है, लेकिन अमेरिका का उद्देश्य चीन को दबाना है। अमेरिकी तकनीक का भारत में हस्तांतरण इस बात पर निर्भर है कि भारत अमेरिकी रणनीति को किस हद तक संतुष्ट कर सकता है। यदि भारत इस लक्ष्य का पालन नहीं कर सकता है, तो वह तकनीकी समर्थन भी ख्तम कर सकेगा। किसी लोकतांत्रिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी गठबंधन में शामिल होने से भारत को काफी सहायता नहीं मिलेगी। जबकि अन्य ब्रिक्स देशों से अलग रहने से भारत पर सीधा भू-राजनीतिक प्रभाव पड़ेगा। दुनिया को लोकतांत्रिक और गैर-लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर दो शिविरों में विभाजित करने की कोशिशें तो हैं, पर दशकों की वास्तविकता ने इस कल्पना को बिखर दिया है।

भारत शानदार सभ्यता वाला महान देश है। एक निश्चित शिविर में शामिल होना भारत के मौलिक हित में नहीं है और इसे भी भारतीय लोगों द्वारा अनुमोदित नहीं किया जाएगा। भारत अपने स्वयं के मौलिक हितों के आधार पर स्वतंत्र विकास का अभियान करना जारी रखेगा।(साभार— चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)

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