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Karnataka High Court ने हत्या के 44 साल पुराने मामले को किया खारिज

Karnataka High Court

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बेंगलुरु : Karnataka High Court ने 44 साल पहले तत्कालीन अविभाजित दक्षिण कन्नड़ जिले में दर्ज हत्या के एक मामले में 68 वर्षीय बेंगलुरु निवासी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही खारिज कर दी है। न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने कहा कि इतने लंबे समय बाद दोष साबित करना संभव नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘यदि आरोपी का बरी होना अपरिहार्य है, तो मुकदमे को आगे बढ़ने देने से कीमती न्यायिक संसाधनों की केवल बर्बादी होगी। इसी के साथ राज्य की आपराधिक न्याय प्रणाली का शायद सबसे पुराना मामला बंद हो गया।’’ उडुपी पुलिस द्वारा आठ जून 1979 को दर्ज किया गया यह मामला उडुपी में श्री अदमार मठ से जुड़े भूमि विवाद से संबंधित है। आरोप है कि विवादित जमीन के किराएदार सीताराम भट ने किट्टा उर्फ? कृष्णप्पा के साथ मिलकर नारायणन नायर और कुन्हीराम पर चाकुओं से हमला किया था। कुन्हीराम की अस्पताल में मौत हो गई थी। संजीव हांडा, बसव हांडा और चंद्रशेखर भट पर सीताराम भट और किट्टा के साथ जाने का आरोप लगाया गया था। प्रारंभिक मुकदमे में सीताराम भट और किट्टा को दोषी ठहराया गया था जबकि संजीव हांडा और बसव हांडा को बरी कर दिया गया था लेकिन इसके खिलाफ अपील किए जाने पर किट्टा को दोष मुक्त करार दिया गया लेकिन सीताराम भट की सजा बरकरार रखी गई।

चंद्रा के खिलाफ कार्यवाही का अनुरोध करते हुए दावा किया कि वह मुकदमे के दौरान फरार था
उडुपी पुलिस ने हाल में चंद्रशेखर भट उर्फ? चंद्रा के खिलाफ कार्यवाही का अनुरोध करते हुए दावा किया कि वह मुकदमे के दौरान फरार था। संजीव हांडा के दामाद चंद्रशेखर भट ने तर्क दिया कि उसे इस मामले की जानकारी नहीं थी क्योंकि वह 1979 से 2022 तक बेंगलुरु में रह रहा था। चंद्रशेखर भट ने दावा किया कि उसे कभी समन नहीं भेजा गया और न ही वारंट जारी किया गया। पुलिस की कार्रवाई के बारे में पता लगने के बाद उसने अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया, लेकिन प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने उसकी याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद उसने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने कहा कि 44 साल पहले के मुख्य गवाह अब उपलब्ध नहीं होंगे, जिससे मुकदमा निर्थक हो जाता है। अदालत ने यह भी कहा कि मामले में दो अन्य आरोपियों को साक्षय़ों के अभाव के कारण बरी कर दिया गया था और यही बात चंद्रशेखर भट के मामले में भी लागू होती है। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि मुकदमा जारी रखने से कोई फायदा नहीं होगा। न्यायाधीश ने कहा, ‘‘न्यायपालिका का समय बचाने के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ मामले को खारिज करना उचित प्रतीत होता है।’’

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