अपने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुलकर बात नहीं कर पाते 40% पुरुष,विशेषज्ञ ने किया खुलासा

समाज में लोगों ने चिंता, अवसाद और तनाव जैसे मुद्दों पर खुलकर बोलना शुरू कर दिया है, लेकिन पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य को आज भी नजरअंदाज किया जाता है।

नई दिल्ली: समाज में लोगों ने चिंता, अवसाद और तनाव जैसे मुद्दों पर खुलकर बोलना शुरू कर दिया है, लेकिन पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य को आज भी नजरअंदाज किया जाता है। विशेषज्ञों ने कहा है कि भारत में लगभग 40 प्रतिशत पुरुष बदनाम होने के डर से अपने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुलकर बात नहीं करते। पुरुषों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 10 जून से 16 जून तक अंतर्राष्ट्रीय पुरुष स्वास्थ्य सप्ताह मनाया जाता है।

कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल्स, एमएएचई, मणिपाल के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख डॉ. समीर कुमार प्रहराज ने आईएएनएस को बताया, “पुरुष मानसिक स्वास्थ्य के बारे में किसी से चर्चा नहीं करते, वह किसी से मदद मांगने को लेकर भी संकोच महसूस करते हैं। इन्हीं कारणों से आत्महत्या के मामलों को बढ़ावा मिलता है।” मनोचिकित्सक और लाइवलवलाफ के अध्यक्ष डॉ. श्याम भट ने कहा, “लगभग 40 प्रतिशत भारतीय पुरुष किसी तरह की बदनामी के डर से अपने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुलकर बात नहीं करते।

इसमें कुछ ऐसी गलत धारणाएं शामिल हैं जिनमें कहा जाता है कि पुरुषों को अपनी भावनाओं को खुद ही संभालना चाहिए।” पुराने समय से ऐसी धारणाएं चली आ रही हैं कि पुरुष शक्ति, मजबूती और भावनात्मक स्थिरता का प्रतीक हैं। टेस्टोस्टेरोन जैसे जैविक और हार्मोनल प्रभाव भी पुरुषों में विभिन्न भावनात्मक प्रतिक्रियाओं में योगदान देते हैं। डॉ. समीर ने कहा कि पुरुषों को अक्सर अपनी भावनाओं को छिपाना सिखाया जाता है। उनके लिए भावनाओं को व्यक्त करना या मदद मांगना शर्मनाक माना जाता है।

डॉ. श्याम ने आईएएनएस को बताया, “पुरुष जब तनाव में होते हैं तो उनके उदासी के बजाय आक्रामकता और गुस्सा दिखाने की संभावना ज्यादा होती है। जबकि महिलाएं ऐसे में अपने आप को कमजोर और उदास महसूस करती हैं।” उन्होंने आगे कहा, “इन मामलों में कई पुरुष चुपचाप यह सब सहते हैं और अपने आप को समाज से अलग-थलग कर लेते हैं। इस कारण वह नशा करने लगते हैं। वे अपने आंतरिक संघर्षों से जूझ रहे होते हैं। पुरुषों को इस चीज से बाहर निकालने के लिए मदद की जरूरत है, जो नहीं मिल पाती। ऐसे में उनके मन में आत्महत्या जैसे ख्याल आते हैं। महिलाओं की तुलना में पुरुषों में आत्महत्या की दर 2.5 गुना अधिक होती है।

डॉक्टरों ने मानसिक विकारों से जुड़े मिथकों और किसी भी प्रकार के डर को खत्म करने के साथ-साथ बातचीत को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान और शैक्षिक कार्यक्रमों के चलाने पर जोर दिया है। डॉ. समीर ने इन सबसे बाहर निकलने के लिए मानसिक स्वास्थ्य के लिए व्यायाम और कई तरह की रचनात्मक गतिविधियां करने की सलाह दी है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने कहा, “पुरुषत्व की धारणा को बदलने के साथ पुरुषों को अपने मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को गंभीरता से लेने और किसी भी कठिनाई का अनुभव होने पर मदद लेने के लिए आगे आना चाहिए।”

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