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लाइलाज नहीं है सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस, जानें इसके बारे में विस्तार से

क्या आपको अपनी गर्दन में कभी दर्द महसूस होता है? या कभी-कभी दर्द के साथ कंधे या बांह में जकड़न या जलन सी होती है या कभी दोनों बांहों में झुरझुरी होती है और बांहें सुन्न हो जाती हैं। अगर ऐसा कुछ है तो ये सारे लक्षण इस का संकेत हैं कि आप सरवाइकल स्पांडिलाइटिस का शिकार हो रहे हैं। यह रोग आधुनिक सभ्यता की एक देन है जहां गर्दन की हड्डियों को विश्राम करने के समय भी आराम नहीं मिलता। प्राय: यह रोग अधिक ऊंचे तकिये लगाने वालों को तथा लंबे समय तक बैठ कर काम करने वाले लोगों में ज्यादा देखा गया है। टैलीविजन या कम्प्यूटर की स्क्रीन पर लगातार घंटों आंखें गड़ाए रखना, कंधे से टेलीफोन लगाए रखकर देर तक बातें करना या फिर लम्बे समय तक लेटकर पढ़ना, ये सब भी गर्दन में जकड़न या गर्दन में दर्द लाने के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं।

यह गर्दन में पीड़ा पैदा करने वाली सबसे सामान्य हड्डी की बीमारी है। यह प्राय: 40 वर्ष से अधिक आयु वालों को होती है परंतु कम आयु वाले लोग भी इस रोग से ग्रसित हो सकते हैं। वास्तविकता में सरवाइकल स्पांडिलाइटिस एक प्रकार की सूजन है जो गर्दन में मौजूद रीढ़ की हड्डी के जोड़ों में उत्पन्न होती है। यह गर्दन की रीढ़ की हड्डी के दो टुकड़ों (सरवाइकल वर्टिब्रा) के बीच पायी जाने वाली गद्दी (डिस्क) की बीमारी है जो अधिकांशत: पांचवीं और छठवीं सरवाइकल वर्टिब्रा के बीच वाली गद्दी में पाई जाती है परन्तु चौथी, पांचवीं और सातवीं ग्रीवा कशेरूका (सरवाइकल वर्टिब्रा) के बीच में भी होती है क्योंकि इन जोड़ों पर गति अधिक होती है। इसमें गर्दन की हड्डियों के बीच की मुलायम गद्दी (डिस्क) के सूख जाने के कारण उनका लचीलापन और भार क्षमता कम हो जाती है जिसके कारण स्पाइनल कार्ड पर अवांछित दबाव पड़ने लगता है और यहीं से गर्दन के दर्द की शुरूआत होती है।

आरम्भ में तो यह केवल गद्दी में ही शुरू होती है परंतु बाद में जोड़ों में भी पहुंच जाती है। प्राय: गर्दन में थोड़ी भी चोट लगने से लक्षण अचानक पैदा हो जाते हैं और रोगी का ध्यान रोग की ओर आकर्षित हो जाता है। गर्दन के दर्द की शुरूआत धीरे-धीरे या अचानक भी हो सकती है। सुबह प्राय: दर्द कम होता है तथा मरीज की सक्रि यता बढ़ने के साथ-साथ दर्द बढ़ता जाता है। प्राय: गर्दन के पीछे भाग में बीचों बीच दर्द होता है जो सिर के पीछे वाले भाग में भी जा सकता है। दर्द कंधे के पीछे वाली हड्डी (स्कैपुला) के बीच, गर्दन के बगल वाले भाग में, कंधे के पास, बाहों और हाथों में भी जा सकता है। रात के समय पीड़ा बढ़ जाती है। यदि स्पाइनल स्त्रायु (स्पाइनल कार्ड) पर दबाव पड़ रहा हो तो शून्यता और मांसपेशियों में कमजोरी का अनुभव हो सकता है।

साथ में हाथों में झुनझुनाहट, सनसनाहट तथा मांसपेशियों में ऐंठन भी अनुभव होती है। बढ़ती उम्र, दुर्घटना आदि भी अस्थि क्षय को बढ़कर गर्दन के दर्द को बढ़ा सकते हैं। इस रोग की वृद्धि मस्तिष्क में रक्त के आगमन में भी बाधा डालती हैं जिसके कारण मस्तिष्क को रक्त की सही आपूर्ति नहीं हो पाती, इसलिए चलते समय, लेटते समय और बिस्तर से उठते समय चक्कर आते हैं। कई बार सिर की अवस्था बदलने पर आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है। आम तौर पर इससे पूरी तरह तो पक्षाघात (लकवा) नहीं होता लेकिन बांह की मांसपेशियां पतली और कमजोर होती जाती हैं। अगर समय पर इलाज न किया जाये तो हाथ से पकड़ा सामान भी छूटने लगता है।

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