तापमान 1.5 डिग्री बढ़ा तो दुनिया के 50 प्रतिशत ग्लेशियर हो जाएंगे गायब

न्यूयॉर्क: एक चौंकाने वाले अध्ययन से पता चला है कि यदि दुनिया में तापमान 1.5 डिग्री सैल्सियस बढ़ जाता है, तो 50 प्रतिशत ग्लेशियर गायब हो जाएंगे और सन् 2100 तक समुद्र के स्तर में 9 सैंमी. की वृद्धि होगी। जर्नल साइंस में प्रकाशित अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि दुनिया के ग्लेशियर सन्.

न्यूयॉर्क: एक चौंकाने वाले अध्ययन से पता चला है कि यदि दुनिया में तापमान 1.5 डिग्री सैल्सियस बढ़ जाता है, तो 50 प्रतिशत ग्लेशियर गायब हो जाएंगे और सन् 2100 तक समुद्र के स्तर में 9 सैंमी. की वृद्धि होगी। जर्नल साइंस में प्रकाशित अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि दुनिया के ग्लेशियर सन् 2100 तक अपने द्रव्यमान का 40 प्रतिशत तक खो सकते हैं।

अमरीका के पिट्सबर्ग में कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने दुनियाभर के ग्लेशियरों का मॉडल तैयार किया (ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक बर्फ की चादरों की गिनती नहीं करते हुए) यह अनुमान लगाने के लिए कि वैश्विक तापमान में औद्योगिक युग से पहले की तुलना में 1.5 से 4 डिग्री सैल्सियस की वृद्धि से वे कैसे प्रभावित होंगे। अध्ययन में पाया गया कि 1.5 डिग्री सैल्सियस तापमान बढ़ने पर दुनिया के आधे ग्लेशियर गायब हो जाएंगे और 2100 तक समुद्र के स्तर में 3.5 इंच की बढ़ौतरी होगी। यदि तापमान 2.7 डिग्री सैल्सियस तक बढ़ता है तो मध्य यूरोप, पश्चिमी कनाडा और अमरीका के लगभग सभी ग्लेशियर (अलास्का सहित) पिघल जाएंगे।

यदि तापमान वृद्धि 4 डिग्री सैल्सियस तक होती है, तो दुनिया के 80 प्रतिशत ग्लेशियर गायब हो जाएंगे और समुद्र के स्तर में 15 सैंटीमीटर की वृद्धि होगी। कार्नेगी के सहायक प्रोफैसर डेविड राउंस ने कहा, ‘तापमान में जितनी भी वृद्धि हो, ग्लेशियरों को बहुत नुक्सान होने वाला है। यह अपरिहार्य है।’ राउंस और टीम का अध्ययन पहला मॉडलिंग अध्ययन है जो दुनिया के सभी 2,15,000 ग्लेशियरों का वर्णन करने वाले उपग्रह-व्युत्पन्न बड़े पैमाने पर परिवर्तन डाटा का उपयोग करता है। अलास्का विश्वविद्यालय और ओस्लो विश्वविद्यालय में ग्लेशियोलॉजी के प्रोफैसर रेजिन हॉक ने कहा, टीम के परिष्कृत मॉडल में ‘नए उपग्रह व्युत्पन्न डाटासैट का उपयोग किया गया जो पहले वैश्विक स्तर पर उपलब्ध नहीं थे’।

हिमनदों के मलबे को मापना बेहद मुश्किल
अलग-अलग मोटाई के कारण हिमनदों के मलबे को मापना आमतौर पर मुश्किल होता है, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह हिमनदों के पिघलने को प्रभावित कर सकता है: मलबे की एक पतली परत पिघलने की गति बढ़ा सकती है, जबकि एक मोटी परत इसे रोक सकती है और इसे कम कर सकती है। सुदूर क्षेत्रों में ग्लेशियर (मानवीय गतिविधियों से दूर) जलवायु परिवर्तन के विशेष रूप से शक्तिशाली संकेतक हैं। तेजी से पिघलते ग्लेशियर मीठे पानी की उपलब्धता, परिदृश्य, पर्यटन, पारिस्थितिकी तंत्र, खतरों की आवृत्ति तथा गंभीरता और समुद्र के स्तर में वृद्धि को प्रभावित करते हैं।

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