शंघाई: मनुष्य स्वाभाविक रूप से सामाजिक होता है। हम संबंध, संचार और साझा अनुभवों के साथ बड़े होते हैं, जो हमारी पहचान को आकार देने और अपनेपन की भावना को बढ़ावा देने में मदद करते हैं। फिर भी, तेजी से डिजिटल और तेज गति वाली दुनिया में, अकेलेपन और सामाजिक अलगाव की भावनाएं चिंताजनक रूप से आम हो गई हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक ये भावनाएं व्यापक हैं। लगभग 25 प्रतिशत वृद्ध लोग सामाजिक अलगाव का अनुभव करते हैं और पांच से 15 प्रतिशत किशोर अकेलेपन के शिकार होते हैं।
ये आंकड़े अहम हैं क्योंकि प्रकाशित अध्ययनों से पता चला है कि सामाजिक अलगाव और अकेलापन बीमारी और मृत्यु के बढ़ते जोखिम से जुड़ा हुआ है। दरअसल, 2022 में प्रकाशित अध्ययन में पाया कि लोगों में सामाजिक अलगाव से डिमेंशिया होने का खतरा 26 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। हमने यह भी पाया कि अकेलापन अवसाद से जुड़ा हुआ है। हमने प्रोटिओमिक्स नामक प्रोटीन के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित किया। ‘नेचर ‘मून बिहेवियर’ पत्रिका में प्रकाशित और कैंब्रिज विश्वविद्यालय और फुदान विश्वविद्यालय के सहयोग से किए अध्ययन में हमने ‘ब्रिटिश बायोबैंक’ के 42,062 प्रतिभागियों के आंकड़ों का इस्तेमाल किया और 2,920 प्लाज्मा प्रोटीन का अध्ययन किया।
हमने प्रोटीन और अकेलेपन एवं सामाजिक अलगाव के बीच संबंध की जांच की। हमने पाया कि प्रोटीन व अकेलेपन और सामाजिक अलगाव अहम रूप से जुड़े हैं। विशेष रूप से, हमारे अध्ययन से संकेत मिला कि अकेलेपन के कारण मस्तिष्क में व्यक्त 5 विशिष्ट प्रोटीनों (जिन्हें जीएफआरए1, एडीएम, एफएबीपी4, टीएनएफआरएसएफ10ए और एएसजीआर1 के रूप में जाना जाता है) के स्तर में वृद्धि हो सकती है। दूसरे शब्दों में, हमने जिन प्रोटीनों को अकेलेपन से संबंधित माना, वे सभी ‘सकारात्मक रूप से संबद्ध’ थे। इसका अर्थ यह है कि जो लोग अकेलापन महसूस करते हैं, उनमें प्रोटीन का स्तर उन लोगों की तुलना में अधिक होता है जो अकेलापन महसूस नहीं करते।