लंदन: पिछले साल जलवायु परिवर्तन के कारण पड़ी प्रचंड गर्मी की वजह से लगभग 90 प्रतिशत भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दों, खाद्यान्न संकट तथा मौत को लेकर ज्यादा जोखिम में हैं। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में बृहस्पतिवार को यह कहा गया। शोध पत्रिका ‘पीएलओएस क्लाइमेट’ में यह अध्ययन ऐसे वक्त प्रकाशित हुआ है जब भारत के कई हिस्से पहले से बढ़े तापमान के कारण भीषण गर्मी की चपेट में हैं। इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि भारत वर्तमान में जलवायु जोखिम को मापने और अनुकूलन के लिए योजना बनाने के संबंध में राष्ट्रीय जलवायु जोखिम सूचकांक (सीवीआई) का इस्तेमाल करता है।
सीवीआई में विभिन्न सामाजिक आर्थिक, जैव-भौतिक, संस्थागत और ढांचागत कारक शामिल हैं, लेकिन इसमें लू के लिए कोई भौतिक जोखिम संकेतक नहीं है। यह ऐसा संकेतक है जो नीति निर्माताओं को यह विचार करने में मदद करेगा कि अत्यधिक गर्मी वास्तव में भारतीय आबादी को कैसे प्रभावित करती है। रिपोर्ट के लेखक और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में कैम्ब्रिज जीरो फेलो डा. रमित देबनाथ ने कहा, ‘गर्मी के प्रकोप का मापन भारत के उन हिस्सों की पहचान करता है जहां आबादी लू के लिए सबसे अधिक जोखिम में है। इससे पूरे भारत में राज्य स्तर पर बनाई जा रही गर्मी की कार्य योजनाओं को और अधिक प्रभावी बनाने में मदद मिलेगी।’
जीवन की गुणवत्ता पर असर
पिछले अध्ययनों से पता चला कि भारत में लगातार लू का खतरा इसकी अर्थव्यवस्था और लोक स्वास्थ्य संसाधनों पर बोझ बढ़़ा रहा है। दीर्घकालिक अनुमानों से पता चलता है कि 2050 तक लू से 30 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित होंगे और वर्ष 2100 तक लगभग 60 करोड़ भारतीयों के जीवन की गुणवत्ता इसकी वजह से कमतर होगी।
‘गर्मी सूचकांक’ शामिल करने वाला पहला अध्ययन
भारत की आबादी पर लू के निरंतर प्रभावों को मापने के लिए ‘गर्मी सूचकांक’ को शामिल करने वाला यह पहला अध्ययन है। सूचकांक मापता है कि मानव शरीर आसपास की परिस्थितियों के सापेक्ष कितनी गर्मी महसूस करता है जब आर्द्रता और हवा का तापमान एक साथ जोड़ा जाता है। अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि सीवीआई भारतीय आबादी के लिए लू के मुख्य जोखिमों और खतरों को कम करके आंकता है क्योंकि इसमें किसी भी प्रकार के गर्मी दबाव मापन शामिल नहीं हैं। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि इस कारक के मौजूद नहीं रहने से दिल्ली और अन्य बड़े शहरी क्षेत्र समेत देश के उन इलाकों की पहचान करना भी कठिन हो जाता है जो सबसे अधिक असुरक्षित हैं।