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Human Body के लिए बड़ा खतरा बन रहा है Pollution, जिस कारण बड़ रही है ये खतरनाक बीमारियां

प्रदूषण मानव शरीर पर कई प्रकार के दुष्प्रभाव डालता है। इसका प्रभाव मानव शरीर पर इतना घातक होता है कि सिर के बालों से लेकर पैरों के नाखून तक इसकी जद में होते हैं। इससे त्वचा, आंख, नाक, गला, फेफडे, हृदय, लीवर, किडनी इत्यादि शरीर के लगभग सभी प्रमुख अंग प्रभावित होते हैं। वायु प्रदूषण के कारण सिरदर्द, आंखों में जलन अथवा खुजली होना, खांसी, गले में खराश, मुंह तथा गले में जलन, सांस लेने में परेशानी, नाक बहना, नाक से खून आना, उल्टी, मतिली, सुस्ती, पेट दर्द का खतरा बढ़ जाता है।

लंबे समय तक प्रदूषित क्षेत्र में रहने के कारण अस्थमा, फेफड़ों की कार्यक्षमता प्रभावित होना, ब्रोंकाइटिस, निमोनिया, फेफड़ों का कैंसर, डिमेंशिया, ब्रेन स्ट्रोक, हार्ट अटैक, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, तनाव आयु सीमा में कमी इत्यादि कई प्रकार की बीमारियां भी हो सकती हैं। हृदय रोग विशेषज्ञों के अनुसार प्रदूषण के कारण मानव शरीर के सभी अंगों को नुक्सान पहुंचता है और सड़क किनारे रहने वाले लोगों को वाहनों की वजह से होने वाले प्रदूषण के कारण हृदयाघात तथा गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है क्योंकि पीएम 2.5 तथा इससे भी छोटे कण सीधे फेफड़ों में चले जाते हैं।

ऐसे लोगों के हृदय की मांसपेशियां भी मोटी हो जाती हैं और इस कारण ऐसे व्यक्तियों को उच्च रक्तचाप की शिकायत भी होने लगती है। वैसे तो वायु प्रदूषण देशभर में लगभग हर जगह बीमारियों की एक मुख्य जड़ बनकर सामने आ रहा है लेकिन अगर देश की राजधानी दिल्ली की बात करें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि दिल्ली में प्रतिवर्ष वायु प्रदूषण के कारण 30 हजार लोगों की मौत हो रही है। सर्दी के मौसम में तो दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति अब अक्सर इतनी बदतर हो जाती है कि इसके कारण हृदय तथा सांस की गंभीर बीमारियों के मरीजों की संख्या में 20 फीसदी तक वृद्धि हो जाती है।

अमेरिकी विश्वविद्यालय के ‘वायु गुणवत्ता सूचकांक’ के अनुसार प्रदूषण ने दिल्ली के लोगों की औसत आयु 10 वर्ष तक कम कर दी है। निर्माण कार्यों और ध्वस्तीकरण से निकलने वाले रेत-धूल, सीमैंट के कण तथा सड़कों पर उड़ने वाली धूल को वायु प्रदूषण का बड़ा कारण माना जाता है और इसमें वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन दिल्ली में तो करीब 40 फीसदी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि आमतौर पर निर्माण तथा ध्वस्तीकरण से निकलने वाला प्रदूषण तथा सड़क पर उड़ने वाले धूल कणों का आकार बड़ा होता है, जिन्हें ‘पीएम 10’ कहा जाता है।

हालांकि ‘पार्टिकुलेट मैटर’ (पीएम 10) के अलावा इससे छोटे प्रदूषण कण ‘फाइन पार्टिकुलेट मैटर’ (पीएम 2.5) भी पर्यावरण को प्रदूषित करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। प्रदूषण नैशनल हैल्थ प्रोफाइल 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में होने वाली संक्रामक बीमारियों में सांस संबंधी बीमारियों का प्रतिशत करीब 69 फीसदी है और देशभर में 23 फीसदी से भी ज्यादा मौतें अब वायु प्रदूषण के कारण ही होती हैं।

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