नई दिल्ली: करेले का जब भी जिक्र होता है तब उसका कड़वा स्वाद जरूर ध्यान में आता है। जहां कई लोग करेले के नाम से ही चिढ़ जाते हैं, तो कई लोगों को करेले की सब्जी बहुत पसंद आती है। क्या आप जानते हैं कि करेला में इतना कड़वापन क्यों होता है और उससे भी बड़ी बाद क्या आपने सोचा है कि करेले सब्जियों में कैसे शामिल हुआ था? करेला एक हरे रंग की सब्जी होती है जो बेल पर ऊगती है, इसे कड़वे स्वाद के लिए अधिकांश लोग इसे पंसद नहीं करते हैं।
लेकिन बहुत सारे लोग इसके सेहत को लेकर कई फायदे गिनाते हैं। इसकी सब्जी भी कई तरह से बनाई जाती है, दलील दी जाती है कि सब्जी अगर सही तरह से बनाई जाए तो यह कड़वी नहीं बल्कि स्वादिष्ट लगती है। साथ ही यह पेट के लिए खास तौर से फायदेमंद बताई जाती है। करेले को पोषक तत्वों से भरपूर माना गया है. इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फैट, फाइबर, विटामिन ए, बी1 बी2, सी, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, फॉसफोरस, जिंक और पोटैशियम जैसे पोषक तत्वों से भरपूर माना जाता है।
इससे पेट के कीड़े और पेट में जमा हुए गैर जरूरी तत्व को निकालने में मददगार माना जाता है। इसे खून को साफ करने वाला, वजन घटना में सहायक, कमजोरी दूर करने और हड्डियां मजबूत करने वाला बताया जाता है। करेला कई रंगों और आकार में आता है. लेकिन यहां भारत में इसका औसत आकार 4 इंच का होता है। वहीं चीन में यह औसतन 8 इंच लंबा होता है. मौसम के अनुसार इसके आकार और लंबाई में भी बदालव आता है।
यह बाहर से हरा और अंदर से सफेद होता है,इसका हरे रंगा वाला हिस्से को छिलके की तरह निकाल दिया जाता है क्योंकि इसका यही हिससा सबसे कड़वा होता है। करेले में एक खास ग्लायकोसाइड मोमोर्टिसिन नाम का गैर जहरीला तत्व होता है जो इसके कड़वे स्वाद का कारण होता है। लेकिन यही कड़वे स्वाद वाले तत्व के ही सेहत संबंधी बहुत से फायदे होते हैं। इससे पेट के पाचन रसों का स्राव सक्रिय होता है, पाचन क्रिया ठीक होती है. गैस आदि की अस्थाई समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है।