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SC ने तमिलनाडु के मंत्री पोनमुडी से संबंधित मामले में हस्तक्षेप करने से किया इनकार

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु के मंत्री के. पोनमुडी और उनकी पत्नी को आपराधिक पुनरीक्षण मामले में नोटिस जारी करने से संबंधित मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से सोमवार को इनकार कर दिया। वेल्लोर की एक निचली अदालत ने आय से अधिक संपत्ति मामले में दोनों को बरी कर दिया था, जिसके बाद उच्च न्यायालय ने अपनी तरफ से यह आपराधिक पुनरीक्षण मामला शुरू किया है।

प्रधान न्यायाधीश डी.वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले का स्वत: संज्ञान लेने के लिए तमिलनाडु उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश की प्रशंसा की। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की सदस्यता वाली इस पीठ ने कहा, शुक्र है कि हमारे पास न्यायमूर्ति आनंद जैसे न्यायाधीश हैं। उनका आचरण देखिए। मुख्य न्यायाधीश मुकदमे को एक जिले से दूसरे जिले में स्थानांतरित करता है। प्रशासनिक स्तर पर मुकदमे को एक जिला न्यायाधीश से दूसरे जिला न्यायाधीश को स्थानांतरित करने की मुख्य न्यायाधीश की शक्ति का इस्तेमाल क्यों नहीं हुआ? यह न्यायिक आदेश होना चाहिए था। उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश इस परीक्षा में सफल हुए।

शीर्ष अदालत ने कहा कि मामला अब भी एकल न्यायाधीश के पास है तथा पक्षों को नोटिस जारी किया गया है, इसलिए, वह इस स्तर पर याचिकाओं पर विचार करने के इच्छुक नहीं है। शीर्ष अदालत ने आरोपी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी की दलीलों पर विचार करने से इनकार कर दिया और कहा कि सभी दलीलें एकल न्यायाधीश के समक्ष दी जा सकती हैं, जिन्होंने मंत्री और उनकी पत्नी के बरी होने पर आरोपी और लोक अभियोजक को नोटिस जारी किया है। मद्रास उच्च न्यायालय ने 10 अगस्त को पोनमुडी और उनकी पत्नी को नोटिस जारी करने का आदेश दिया था।

न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश ने सीआरपीसी की धारा 397 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए पोनमुडी और उनकी पत्नी विशालाची को बरी करने के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेकर पुनरीक्षण याचिका दर्ज की थी। उन्होंने तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी करने का आदेश देते हुए मामले की सुनवाई सात सितंबर, 2023 तक के लिए स्थगित कर दी थी। अभियोजन पक्ष का आरोप था कि द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के वरिष्ठ नेता पोनमुडी ने 1996 और 2001 के बीच मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान अपने और पत्नी के नाम पर 1.4 करोड़ रुपये की संपत्ति अर्जित की थी, जो उनकी आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक थी। वेल्लोर की अदालत ने 28 जून को दंपति को बरी कर दिया था।

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