Site icon Dainik Savera Times | Hindi News Portal

करनाल में पशु पक्षी प्रेमी संस्था ने करनाल में बना दिया गौरेया एनक्लेव, 3 से बढक़र 3 हजार से अधिक पहुंची जनसंख्या

करनाल: दैनिक सवेरा की गौरेया एन्क्लेव चिडिय़ों का मौहल्ला को लेकर खास रिपोर्ट सामने आई है। परिंदे पर्यावरण के सच्चे प्रहरी कहे जाते है। उन्हें पर्यावरण दूत का भी दर्जा दिया गया है, लेकिन अंधाधुंध शहरीकरण के बीच हमने उनका बसेरा छीन लिया है। सबसे ज्यादा उन नुकसान घर के आंगन में बरबस फुदकने वाली उस गौरैया चिडिय़ा के साथ हुआ। वहीं करनाल के श्यामनगर में करीब एक हजार से अधिक चिडिय़ों घर बने हुए हैं, गौरेया की ची-चीं की आवाज सुनाई देती रहती हैं।

गायब हो रही गौरेया की इतनी बड़ी संख्या को देखकर लोगों ने गौरेया के निवास स्थान को गौरेया एन्क्लेव चिडिय़ों का मौहल्ला का नाम दे दिया। यहां पर 3 चिडिय़ां से बढक़र करीब 3 हजार से अधिक गौरेया की संख्या पहुंच चुकी हैं। क्योंकि गौरेया को निवास पंसद आ रहा हैं। ये सब हुआ हैं पक्षी प्रेमी संस्था सत्या फाउंडेशन के सदस्यों के अथक प्रयासों की बदौलत यहीं नहीं प्रशासनिक अधिकारी गौरेया के निवास को देखने आते है तो लोगों की समस्याओं का तेजी से निवारण भी होने लगा है। गौरेया को देखकर लोगों में काफी परिवर्तन आया हैं, गौरेया के प्रति नजरिया बदला हैं।

काम कर रहे संदीप नैन ने बताया कि पशु-पक्षी प्रेमी संस्था सत्या फाउंडेशन की एक नई और अनोखी पहल रंग लाई है, जो गौरैया संरक्षण पर पिछले 6 साल से काम कर रही हैं। संस्था अब तक 1200 से अधिक मजबूत लक्कड़ के घोंसले बनावा कर अनेक जगह पर लगवा चुकी है। संस्था द्वारा विश्व गौरैया दिवस, राहगिरी, पार्कों, मंदिर, हाईवे आदि पर 1100 से अधिक घोसलें को आमजन को नि:शुल्क वितरित किया। श्यामनगर में 5 साल पहले शुरू की अनोखी पहल उन्होंने कहा कि शाम-नगर करनाल में 5 वर्ष पहले कुछ आशियाने बनाकर गौरैया को आमंत्रित करने का फैसला किया। उन्होंने गौरैया के लिए पुराने डिब्बों को काटकर 5 घोसले लगाए। थोड़े ही दिनों में सभी घोसलों में चीं-चीं की आवाज गूंजायमान हो रही थी। इसके बाद लकड़ी के करीब 950 से अधिक घोंसलें घरों के आगे लगाएं, जिनमें चिडिय़ां रहने के लिए आई।

उन्होंने कहा कि गौरेया को खाने की दिक्कत न हो, इसे देखते हुए बर्ड फीडर बनाकर उनमें एक-एक महीने का मिक्स दाना, जिसे गौरेया अधिक पंसद करती हैं, रखा जाता हैं। अब तो लोग घोंसले मांगते है ताकि उनके आंगन में भी चिडिय़ां की आवाज गूंजे, लेकिन संसाधनों की कमी होती हैं। मांग पूरी नहीं कर पाते, इसे देखते हुए बहुत से लोग अपने आप ही अलग-अलग तरीकों से घोंसले बना लेते हैं।

कीटनाशकों व क्रंक्रीट जंगलों की वजह से गायब हो रही गौरेया संदीप नैन ने बताया कि घरों के बाहर कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव का सेवन करने से गौरैया पक्षी का जीवन खत्म हो रहा है। शहरों का बेतरतीब विकास, घटते वृक्ष व हरियाली और कंक्रीट के बढ़ते जंगलों के बीच घरेलू चिडय़िा के नाम से पहचानी जाने वाली गौरैया कहीं खो गई थी। मगर हमारे और लोगो के प्रयास से अब गौरैया की वही चीं-चीं की आवाज गूंजायमान हो रही है, और गौरैया का आना जाना फिर से शुरू हो गया है।

Exit mobile version