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सदियों पुरानी लुप्त होती जा रही इस परंपरा के कारीगरों को अबकी बार क्या है दीवाली से उम्मीदें ?

अंबाला: मिट्टी के दिए और बर्तन बनाने वाली परंपरा युगों युगों से चली आ रही है। भारत वर्ष में कोई भी धार्मिक कार्य करना होता है तो उसमे मिट्टी के दियों और बर्तनों को रखा जाता है। लेकिन जैसे जैसे तकनीक बदलती गई वैसे वैसे मिट्टी बर्तनों की जगह स्टील, प्लास्टिक व चाइनीज चीजों ने.

अंबाला: मिट्टी के दिए और बर्तन बनाने वाली परंपरा युगों युगों से चली आ रही है। भारत वर्ष में कोई भी धार्मिक कार्य करना होता है तो उसमे मिट्टी के दियों और बर्तनों को रखा जाता है। लेकिन जैसे जैसे तकनीक बदलती गई वैसे वैसे मिट्टी बर्तनों की जगह स्टील, प्लास्टिक व चाइनीज चीजों ने ले ली। जब से बाजार में चाइना के दिए व अन्य सामान आना शुरू हुआ तब से मिट्टी के बर्तन बनाने वाले लोगों को काफी घाटा होना शुरू हो गया और एक समय ऐसा भी आया जब मिट्टी के बर्तन बनाने वाले लोगों को घाटे के चलते सदियों से चली आ रही परंपरा को भी छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।

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मिट्टी के बर्तन बनाने वाले लोगों के बच्चे भी इस काम को छोड़कर दूसरे कामों की तरफ जाने लगे। लेकिन कोरोना काल के बाद जैसे ही लोगों ने चाइना के माल का बहिष्कार करना शुरू किया और लोगों को मिट्टी के बर्तनों के लाभ के बारे में पता चला तो एक बार फिर से मिट्टी के बर्तनों की डिमांड बढ़ने लगी। जैसे ही मिट्टी के बर्तनों की डिमांड बढ़ी वैसे ही एक बार फिर से मिट्टी के बर्तन बनाने वाले लोगों ने अपनी सदियों से चली आ रही परंपरा को दोबारा से शुरू कर दिया। इतना ही नहीं उन्हे अब अच्छी इनकम भी होने लगी और इस काम में उनके बच्चे भी हाथ बटाने लगे। युवाओं का कहना है कि सरकार अगर हमे इसके लिए कोई जगह उपलब्ध कराए तो ये बिजनस और भी अच्छा चल सकता है। इस बार दिवाली पर मिट्टी के बर्तन बनाने वाले लोगों को अच्छा व्यापार होने की उम्मीद कर रहे है।

 

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