नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने बिलकिस बानो मामले के दोषियों की रिहाई विवाद पर सुनवाई के दौरान कहा कि आपराधिक मामले में आरोपी को समाज में पुनः शामिल होने का संवैधानिक अधिकार है। न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने 11 दोषियों की सजा में छूट देकर उन्हें रिहाई करने के गुजरात सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की हैं।
पीठ ने कहा कि भारत के संविधान राष्ट्रपति और राज्यपालों को आपराधिक दंडों को क्षमा करने और माफ करने की अनुमति देने का अधिकार देता है। पीठ ने इस मामले में तीसरे पक्ष द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। इस पक्ष ने दलील दी कि माफी आवेदन दायर करने का अधिकार वैधानिक है। ऐसी याचिकाओं पर कानून और प्रत्येक मामले के तथ्यों के गुण दोष के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।
इस पर न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, कि “यदि आप देखें तो किसी आरोपी को समाज में पुनः शामिल करना भी एक संवैधानिक अधिकार है। वैधानिक अधिकार होने के अलावा सजा में छूट का उल्लेख 161, 72 (संविधान के अनुच्छेद) में किया गया है।” शीर्ष अदालत इस मामले की अगली सुनवाई 17 अगस्त को अपराहन दो बजे करेगी। गुजरात में वर्ष 2002 में बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के कई लोगों की हत्या कर दी गई थी। इस मामले में पिछले साल 11 दोषियों को सजा में छूट के साथ रिहा कर दिया गया था। बिलकिस बानो ने इस फैसले को चुनौती दी थी। उनके अलावा और भी कई लोगों ने जनहित याचिका दायर की थीं।