घृत पर्व : रंग-बिरंगी लाइटों व फूलों से सजा Maa Shri Bajreshwari Devi का दरबार, जानिए इसका महत्व

कांगड़ा : मकर सक्रांति पर जिला स्तरीय घृत पर्व के आयोजन पर शक्तिपीठ मां श्री बज्रेश्वरी देवी की पिंडी तथा क्षेत्रपाल भगवान पर मक्खन का लेप चढ़ाकर फल और मेवों से मां की पिंडी का श्रृंगार किया जाएगा। घृत पर्व के लिए मंदिर को रंग-बिरंगी रोशनी व फूलों से सजाया गया है। कई वर्षों से.

कांगड़ा : मकर सक्रांति पर जिला स्तरीय घृत पर्व के आयोजन पर शक्तिपीठ मां श्री बज्रेश्वरी देवी की पिंडी तथा क्षेत्रपाल भगवान पर मक्खन का लेप चढ़ाकर फल और मेवों से मां की पिंडी का श्रृंगार किया जाएगा। घृत पर्व के लिए मंदिर को रंग-बिरंगी रोशनी व फूलों से सजाया गया है। कई वर्षों से चले आ रहे इस पर्व में स्थानीय व बाहरी राज्यों के श्रद्धालु इस पर्व को देखने व माथा टेकने आते हैं। माघ मास की संक्रांति के दिन शुरू होने वाले इस उत्सव के दौरान मंदिर में खास इंतजाम किए हैं। ठंड के बावजूद देसी घी को शीतल जल में एक सौ एक बार धोकर मक्खन बनाने के दौरान हाथ सुन्न से हो जाते हैं, पर मां के आशीर्वाद से यह काम जारी रहता है। पुजारियों का कहना है कि मा के आशीर्वाद से घृत पर्व के सभी कार्य स्वयं हो जाते हैं व श्रद्धालुओं द्वारा 26 क्विंटल देसी घी मंदिर में चढ़ाया गया है।

वहीं पुजारी वर्ग द्वारा 23 क्विंटल देसी घी को मक्खन में बदल दिया गया है। मंदिर सहायक आयुक्त एवं एसडीएम कांगड़ा नवीन तंवर ने बताया कि घृत पर्व की तैयारियां पूरी कर ली है। श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त पुलिस जवानों की तैनाती की जाएगी, वही रात्रि के समय जागरण का भी आयोजन किया जाएगा। वरिष्ठ पुजारी पंडित राम प्रसाद शर्मा ने बताया कि माता की पिंडी पर चढ़ाए जाने वाला मक्खन बाद में श्रद्धालुओं व बाहर से आने जाने वाले लोगों को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। ऐसा माना जाता है कि पिंडी पर चढ़ाया गया यह मक्खन रूपी घी कई बिमारियों के लिए लाभप्रद सिद्ध होता है और यह प्रक्रिया पिछले कई वर्षों से चली आ रही है। बज्रेश्वरी देवी जी का मंदिर 51 सिद्ध पीठों में से एक माना जाता है। मां बज्रेश्वरी देवी के दर्शनों के लिए यहां पूरे भारत से श्रद्धालु आते है।

जानिए क्या हैं मान्यता

पौराणिक कथा के अनुसार मां बज्रेश्वरी देवी जब जालंधर दैत्य से युद्ध करते हुए घायल हो गईं तब देवताओं ने उनके घावों पर मक्खन से लेप किया था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। मान्यता है कि सात दिन तक मक्खन माता की पिंडी पर चढ़ा रहता है। सातवें दिन पिंडी से मक्खन उतारने की प्रक्रिया शुरू होती है, फिर इन्हें श्रद्धालुओं में प्रसाद के तौर पर बांटा जाता है। यह भी मान्यता है कि इस प्रसाद को खाया नहीं अपितु शरीर पर लगाने से चरम जैसे रोग दूर होते हैं।

 

 

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