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ईम्युनिटी बढ़ाने के लिए गिलोय को करें खाने की तरह दिनचर्या में शामिल : डा. तारादेवी सेन

मंडी : कोरोना वायरस ने एक बार फिर से हमारे प्रदेश में पैर पसारना शुरू कर दिए हैं। इससे बचने के लिए हमें अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में गिलोय जैसे इम्यूनिटी बढ़ाने वाले पोधों को शामिल करने की जरूरत है। गिलोय जिसको अमृता भी कहा जाता है औयुर्वेद के उन कुछ पौधों में आता है जो कि लगभग हर बिमारी के उपचार में उपयोगी है इसलिए इसका उपयोग कई बीमारियों से बचाव के साथ- साथ हमारी रोगप्रतिरोघ क्षमता को भी बढ़ाएगा। वैसे तों गिलोय को ताजा चबा के या काढ़े के रूप में लिया जाता है लेकिन बच्चे इस तरह से गिलोय को इसके कसैले स्वाद के कारण लेने से कतराते हैं और बड़े भी आमतौर पर इस भागदौड़ की जिंदगी में अधिक दिनों तक इसतरह से गिलोय को नहीं ले पाते।

कुछ लोग पतंजलिकी गिलोय वटी लेना पसंद करते है पर यह भी कहीं न कहीं हमें एक रोगी का अनुभव दिलाती है और बच्चे भी इसे रोज रोज लेना पसंद नही करेंगे। ऐसे मैं गिलोय को दिनचर्या में सम्मिलित करने का सबसे आसान तरीका है सूखा कर पाउडर कर लें और प्रति व्यक्ति के हिसाब से छोटे चम्मच का एक चौथाई हिसा आटे में मिला कर रोटी बनाए इस तरह घर के सभी लोग इसे 1 उचित मात्र में ले सकते है। इस तरह गिलोय का कसेला स्वाद भी महसूसनहीं होता। गिलोयपाउडर को हलवे या अन्य पारंपरिक व्यंजन सीरा अथवा हलवा में मिला कर भी खाने में उपयोग किया जा सकता है।

पुराने समय में गिलोय के तने या शाखाओं से सीरा बनाना एक आम बात थी और यह मानाजाता था कि साल मैं अगर दो से तीन बार सिरे का हलवा या सीरा खालें तो कई बीमारियों से बचा जा सकता हैं लेकिन सीरा बनाने की प्रकिया जटिल होने के कारण गिलोय का सीरा विलुप्त होने वाली रेसिपी में शामिल हो चुका है। हालांकि सरकाघाट के कुछ गावों में यह प्रकिया आज भी जीवित है और स्थानीय लोग बड़े चाव से गिलोय का सीरा-हलवा खाते हैं। मंडी और धुमादेवी के कुछ स्वयं सहायता समूहों ने गिलोय का पाउडर तैयार कर के बेचना शुरू किया है जो वे सेरी मंच या स्थानीय मेलो में बेचती है इस तरह गिलोय का पाउडर उनके लिए आय का अतिरिक्त साधन है।

गिलोयपाऊडर और सीरा बनाने की विधि

डा. तारा सेन ने बताया कि गिलोय का पाउडर तैयार करने के लिए इसकी शाखाओं और एरियल जड़ों को पानी के अंदर डुबोया जाता है, इससे उनकी त्वचा नरम हो जाती है। सूखने के बाद ये आसानी से पाउडर की जा सकती हैं। सीरा यानी हलवा बनाने के लिए तने तथा शाखाओं को पानी में उबालें और फाइबर से स्टार्च निकालने के लिए निचोड़ें। निकाले गए स्टार्च को सूती कपड़े से छान कर अतिरिक्त पानी से अलग करने के लिए ठीक से बांधा जाता है। स्टार्च अर्क को अब कम से कम 5 से 7 दिनों के लिए किण्वित किया जाता है। किण्वन की गंध से बचने के लिए हर दिन कम से कम 2 बार पानी बदलना आवश्यक है। इस किण्वित पेस्ट को छोटे या बड़े आकार की गोलियां बना कर प धूप में सुखाया जाता है अब सीरा मन चाहे तरीके से पकाने के लिए तैयार है। डा. तारा सेन ने बताया कि गिलोय का वानस्पतिक नाम टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया है।

इसे आमतौर पर गुलजे , गिलोय या हार्ट लीव मूनसीड प्लांट के रूप में जाना जाता है जो मेनिस्पर्मेसी परिवार से संबंधित है। टीनोस्पोरा कोर्डीफोलिया व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला औषधीय पौधा है जिसमें एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह व्यापक रूप से मधुमेह, उच्च कोलेस्ट्रॉल के स्तर, उच्च बुखार, हे फीवर, पेट खराब, पेप्टिक अल्सर और यहां तक कि कैंसर के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। कई रोगों की रोकथाम में लाभकारी होने के कारण इससे हिंदी में अमरीता भी कहा जाता है। इसका पोषण मूल्य 292.54 कैलोरी प्रति 100 ग्राम है। इसमें उच्च फाइबर 15.9 प्रतिशत , प्रोटीन 4.5 प्रतिशत -11.2 प्रतिशत, पर्याप्त काबरेहाइड्रेट 61.66 प्रतिशत और कम वसा 3.1 प्रतिशत होते हैं।

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