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action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /var/www/dainiksaveratimescom/wp-includes/functions.php on line 6114श्रीनगरः क्षेत्रीय नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और उसके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) कई राजनीतिक कारणों से अनुच्छेद 370 का बचाव करने के लिए अजनबी साथियों के रूप में एक साथ आए हैं। कभी दुश्मन रह चुके एनसी और पीडीपी गुपकार गठबंधन के जरिए एक साथ आ चुके हैं। बता दें कि गुपकार गठबंधन की घोषणा एनसी अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला की अध्यक्षता में की गई थी। गुपकार गठबंधन अनुच्छेद 370 की बहाली और जम्मू-कश्मीर के लिए राज्य का दर्ज चाहता है।
पीडीपी 1999 में इस आधार पर अस्तित्व में आई कि लोगों को एनसी के वंशानुगत शासन के लिए एक क्षेत्रीय मुख्यधारा के विकल्प की आवश्यकता थी। पीडीपी के चुनावी अभियान के एक भी घोषणा पत्र में एनसी के बारे में दूर-दूर तक कुछ भी अच्छा नहीं कहा गया है। एनसी ने स्वायत्तता प्रस्ताव को राज्य विधानसभा से पारित करा लिया था और बाद में इसे दिल्ली भेज दिया गया, जहां उसे कोई लेने वाला नहीं मिला।
पीडीपी, एनसी पर बढ़त बनाने के अपने खेल में, स्व-शासन के विचार के साथ सामने आई। स्वायत्तता और स्व-शासन दोनों अलग-अलग नाम थे, लेकिन अनुच्छेद 370 द्वारा गारंटीकृत भारतीय संघ में जम्मू-कश्मीर की स्थिति को संरक्षित करने की अंतर्नहित भावना एक ही थी। राजनीतिक रूप से, स्वायत्तता और स्व-शासन दोनों का उद्देश्य दो स्थानीय मुख्यधारा की पार्टियों द्वारा अलगाववादियों के शोर के बीच एक व्यवहार्य विकल्प प्रस्तुत करना था।
इस बात से सहमत हुए बिना कि दोनों ने संघर्षग्रस्त घाटी में स्थानीय जनता का समर्थन प्राप्त करने के इरादे से गठबंधन किया था, एनसी और पीडीपी दोनों ने अपने फॉर्मूले को एक सम्मानजनक स्थान की तलाश के रूप में बताया। जबकि दिल्ली को स्वायत्तता के प्रस्ताव के संबंध में राज्य सरकार के साथ चर्चा करने के लिए कुछ भी नहीं मिला, पीडीपी के स्व-शासन फॉर्मूले को केंद्र सरकार द्वारा बहुत अलग तरीके से व्यवहार नहीं किया गया।
फिर भी, एनसी और पीडीपी दोनों के लिए कश्मीर के लोगों के बीच राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बने रहने के लिए, स्व-शासन और स्वायत्तता के नारे लगाना काफी हद तक दोनों पार्टयिों के लिए राजनीतिक अस्तित्व का हिस्सा था। स्व-शासन और स्वायत्तता की अपनी मांग पर कायम रहते हुए चुनावों में वोट मांगने की रणनीति पीडीपी और एनसी दोनों के लिए अच्छी स्थिति में रही, जब तक कि दिल्ली ने अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला नहीं कर लिया।
जब 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया, तो एनसी और पीडीपी स्तब्ध रह गए। जबकि अलगाववादियों ने अलगाव की मांग की और दो मुख्यधारा की पार्टयिों ने स्व-शासन और स्वायत्तता के तहत अधिक रियायतों की मांग की, उनके पैरों के नीचे की जमीन हिलने लगी थी। दिल्ली ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर संघ के अन्य राज्यों के साथ अंतर के रूप में जम्मू-कश्मीर के पास जो कुछ बचा था उसे भी छीन लिया।
यदि अन्य राज्यों के संबंध में राज्य के भारत में विलय में कोई विशिष्टता थी, तो 5 अगस्त, 2019 को वह गायब हो गई। यदि ये दोनों दल स्थानीय रूप से प्रासंगिक बने रहना चाहते हैं तो एनसी और पीडीपी के पास अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। संक्षेप में, एनसी और पीडीपी की स्वायत्तता और स्व-शासन की मांगों पर हार के बाद अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग करना अपने आप को लोगों के सामने अस्तित्व को बनाए रखने जैसा है। अनुच्छेद 370 की बहाली के नारे के साथ वे कितने समय तक टिके रह सकते हैं, यह सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ द्वारा की जा रही संवैधानिक मुद्दे की सुनवाई के नतीजे पर निर्भर करेगा।