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मनी लॉन्ड्रिंग मामला: हाईकोर्ट ने द क्विंट के संस्थापकों को दी विदेश यात्रा की अनुमति

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को द क्विंट न्यूज प्लेटफॉर्म के संस्थापक राघव बहल और उनकी पत्नी व सह-संस्थापक रितु कपूर को दो से नौ सितंबर के बीच व्यावसायिक बैठकों के लिए लंदन और न्यूयॉर्क की यात्रा करने की अनुमति दे दी। न्यायमूर्ति अमित बंसल की अध्यक्षता वाली अदालत ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले.

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को द क्विंट न्यूज प्लेटफॉर्म के संस्थापक राघव बहल और उनकी पत्नी व सह-संस्थापक रितु कपूर को दो से नौ सितंबर के बीच व्यावसायिक बैठकों के लिए लंदन और न्यूयॉर्क की यात्रा करने की अनुमति दे दी। न्यायमूर्ति अमित बंसल की अध्यक्षता वाली अदालत ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दंपति के खिलाफ जारी लुक आउट सर्कुलर (एलओसी) को भी निलंबित कर दिया है।

न्यायमूर्ति बंसल ने बहल और कपूर को 17 सितंबर को या उससे पहले भारत लौटने की अपनी प्रतिबद्धता बताते हुए एक शपथ पत्र देने का निर्देश दिया, साथ ही उन्हें अपनी यात्रा कार्यक्रम भी बताने को कहा। अदालत का आदेश अतीत में दी गई इसी तरह की यात्रा अनुमतियों के अनुपालन के उनके पूर्व रिकॉर्ड पर आधारित है। उनके वकील अभिमन्यु भंडारी ने कहा कि आवेदकों ने पहले यात्रा नियमों का पालन किया था और निर्धारित के अनुसार भारत लौट आए थे।

लेकिन ईडी ने आवेदनों का विरोध किया, संस्थापकों के खिलाफ गंभीर आरोपों का हवाला दिया और चिंता व्यक्त की कि उनकी विदेशी संपत्ति को देखते हुए वे वापस नहीं लौट सकते। आवेदकों के यात्रा नियमों के अनुपालन के पिछले इतिहास को ध्यान में रखते हुए, न्यायमूर्त िबंसल ने कहा: ‘मैं आवेदनों को अनुमति देना उचित समझता हूं, उक्त तिथियों पर एलओसी निलंबित है।‘

इस साल जनवरी में, न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने बहल की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उनके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी की कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी और कहा था कि जांच अभी खत्म नहीं हुई है और याचिका समय से पहले है। कोर्ट ने बहल के खिलाफ जारी एलओसी को रद्द करने से भी इनकार कर दिया था।

ईडी ने बहल द्वारा लंदन में एक संपत्ति खरीदने के लिए इस्तेमाल किए गए लगभग 2.45 करोड़ रुपये के फंड का खुलासा न करने के लिए आयकर विभाग द्वारा दायर आरोप पत्र के आधार पर जांच शुरू की थी। यह मामला 2019 में धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत दर्ज किया गया था।

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