शांति का नोबेल पुरस्कार: नरगिस मोहम्मदी की जीत मानवाधिकारों के लिए ईरानी महिलाओं के संघर्ष की जीत

नॉटिंघम: ईरान में महिला अधिकारों, लोकतंत्र और मृत्युदंड के खिलाफ वर्षों से संघर्ष कर रहीं नरगिस मोहम्मदी ने इस वर्ष शांति का नोबेल पुरस्कार जीता है। मोहम्मदी फिलहाल जेल में हैं और उन पर देश के खिलाफ प्रचार करने सहित कई आरोप हैं। उन्हें ‘‘ईरान में महिलाओं के दमन के खिलाफ तथा मानवाधिकारों को बढ़ावा.

नॉटिंघम: ईरान में महिला अधिकारों, लोकतंत्र और मृत्युदंड के खिलाफ वर्षों से संघर्ष कर रहीं नरगिस मोहम्मदी ने इस वर्ष शांति का नोबेल पुरस्कार जीता है। मोहम्मदी फिलहाल जेल में हैं और उन पर देश के खिलाफ प्रचार करने सहित कई आरोप हैं। उन्हें ‘‘ईरान में महिलाओं के दमन के खिलाफ तथा मानवाधिकारों को बढ़ावा देने तथा सभी की स्वतंत्रता’’ की दिशा में काम करने के लिए समिति ने नामित किया था।

यह पुरस्कार देने की घोषणा उस वक्त की गई जब महिलाओं के लिए निर्धारित परिधान के नियम का उल्लंघन करने पर ईरान में नैतिकतावादी पुलिस ने महसा अमीनी को गिरफ्तार किया था और हिरासत में उसकी मौत हो गई थी। अमीनी की मौत से ईरान भर में महिलाएं आक्रोशित होकर सड़कों पर उतर आई थीं।समिति ने कहा, ‘‘सबसे पहले यह पुरस्कार ईरान में पूरे आंदोलन ‘महिला-जीवन-स्वतंत्रता’ के लिए बहुत अहम कार्य और उसकी निर्विवाद नेता नरगिस मोहम्मदी को मान्यता देने के लिए है।’’

इसमें कहा गया कि ईरान के दमन के सामने यह प्रदर्शन लंबा चला जो अपने आप में उल्लेखनीय है। ईरान में 1979 की क्रांति के बाद सरकार की कमान इस्लामिक नेता आयतुल्ला रुहोल्लाह के हाथ में आ गई थी। उनके शासन ने महिलाओं को निशाना बनाने वाले अनेक दमनकारी कानून लागू किए। लेकिन शासन द्वारा उन पर की गई हिंस के बावजूद, महिलाएं ईरान में उत्पीड़न के खिलाफ विरोध में सबसे आगे रहीं।

नरगिस मोहम्मदी 1990 के दशक की शुरुआत में एक छात्र के रूप में संघर्ष में शामिल हुईं। भौतिकी में स्रातक होने और एक इंजीनियर के तौर पर नौकरी मिलने के बाद उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए आंदोलन करना और लेख लिखना शुरू किया। मोहम्मदी को 1998 में पहली बार ईरान सरकार की आलोचना के लिए गिरफ्तार किया गया था। 2003 तक उन्होंने संगठन ‘डिफेंडर्स ऑफ मून’ राइट्स सेंटर इन तेहरान’ के लिए काम किया। इस संगठन की स्थापना शीरीन इबादी ने की थी। इबादी को उस वर्ष शांति का नोबेल पुरस्कार दिय गया था और यह पुरस्कार पाने वाली वह इस्लामिक जगत की पहली महिला थीं।

मोहम्मदी 13 बार जेल गईं और उन्हें पांच बार दोषी करार दिया गया, उन्हें कुल 31 साल कारावास और 154 कोड़ों की सजा सुनाई गई है। उन्हें 2022 में तेहरान की सबसे कुख्यात जेल में बंद किया गया था, जब विरोध प्रदर्शनों पर दुनिया भर की नजरें गईं। हालांकि, कारागार में रहने के बावजूद मोहम्मदी ने ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में सितंबर 2023 में लेख लिखा। जिसका शीर्षक था ‘‘जितनी हम लोगों पर बंदिशें लगाई जाएंगी, उतने ही हम मजबूत होंगे।’’

इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि महिलाओं के नेतृत्व में चलाए गए आंदोलन अकसर लोकतांत्रिक परिवर्तन लाने में प्रभावी रहे हैं। ईरानी कारागारों में उत्पीड़न ऐसा मुद्दा है, जिसके खिलाफ मोहम्मदी ने कारागार में रहने या बाहर रहने के दौरान अभियान चलाया है। ईरानी जेलों में उत्पीड़न की बड़े पैमाने पर जानकारी संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार समूहों को दी गई है। पेशे से इंजीनियर मोहम्मदी को 2018 में आंद्रेई साखारोव पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

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