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Akash Anand नहीं कर सके कमाल, Delhi में भी गिरा ग्राफ

लखनऊ : बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के गिरते जनाधार को संभालने के लिए मायावती ने अपने भतीजे और नेशनल कोऑर्डनिेटर Akash Anand को कमान दी है। लेकिन हरियाणा के बाद दिल्ली के विधानसभा चुनाव में वह खाता खोलने में भी सफल नहीं हो सके। वह कोई कमाल नहीं दिखा सके हैं। दिल्ली में पार्टी का.

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लखनऊ : बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के गिरते जनाधार को संभालने के लिए मायावती ने अपने भतीजे और नेशनल कोऑर्डनिेटर Akash Anand को कमान दी है। लेकिन हरियाणा के बाद दिल्ली के विधानसभा चुनाव में वह खाता खोलने में भी सफल नहीं हो सके। वह कोई कमाल नहीं दिखा सके हैं। दिल्ली में पार्टी का ग्राफ और गिर गया है। दरअसल, बसपा मुखिया मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का राष्ट्रीय कोऑर्डनिेटर और उत्तराधिकारी बनाकर पार्टी को पूरे देश में मजबूत करने की जिम्मेदारी दी है। बसपा को हरियाणा के बाद दिल्ली से काफी उम्मीदें थीं, लेकिन यह खरे नहीं उतर सके। बसपा मुखिया मायावती ने इसके लिए किसी को जिम्मेदार नहीं माना है। उन्होंने कहा कि ‘हवा चले जिधर की, चलो तुम उधर की’ भाजपा की सरकार दिल्ली में बना दी है। भाजपा के पक्ष में लगभग एकतरफा होने से बसपा सहित दूसरी पार्टियों को काफी नुकसान सहना पड़ा है।

महाराष्ट्र-झारखंड के बाद दिल्ली में भी बसपा का खाता नहीं खुल सका

वरिष्ठ राजनीतिक विषयक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि हरियाणा, महाराष्ट्र-झारखंड के बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी बसपा का खाता नहीं खुल सका। पार्टी के राष्ट्रीय कोऑर्डनिेटर आकाश आनंद भी कुछ नहीं कर सके। उन्होंने बताया कि लगातार बसपा के गिर रहे जनाधार को बढ़ाने के लिए बसपा ने नए उभरते हुए दलित नेता चंद्रशेखर के खिलाफ आकाश आनंद को खड़ा करने की कोशिश की है। क्योंकि युवा दलित मतदाता चंद्रशेखर की तरफ आकर्षित हो रहा है। उसे रोकने और युवाओं में पैठ बढ़ाने के लिए मायावती ने आकाश को लॉन्च तो किया है, लेकिन अभी तक कुछ खास हो कर नहीं पाए। न ही वोट बैंक बढ़ाने में, न संगठन को मजबूती देने में। अभी हाल में यूपी में हुए उपचुनाव में भी महाराष्ट्र व झारखंड विधानसभा चुनाव में भी बसपा को पराजय का ही सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में बसपा का ग्राफ पहले के चुनाव की अपेक्षा काफी कम हुआ है। लगातार गिरते ग्राफ का असर आगे के चुनाव में पड़ सकता है। इसके लिए पार्टी को कोई अलग रणनीति अपनानी पड़ सकती है। पहले हरियाणा-जम्मू-कश्मीर, फिर महाराष्ट्र-झारखंड और अब दिल्ली में बसपा का लचर प्रदर्शन पार्टी के लिए अस्तित्व का संकट बढ़ाने वाला भी हो सकता है।

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