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हवा में मौजूद PM 2.5 की मात्र में वृद्धि से भारतीयों में बढ़ रहा है मौत का खतरा : Research

नई दिल्ली : एक शोध में यह बात सामने आई है हवा में मौजूद महीन कण (PM 2.5) की मात्र में वृद्धि मृत्यु दर में वृद्धि से जुड़ा है। हर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर वायु में पीएम 2.5 की वृद्धि से मृत्यु दर में 8.6 प्रतिशत की वृद्धि होती है। लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ पत्रिका.

नई दिल्ली : एक शोध में यह बात सामने आई है हवा में मौजूद महीन कण (PM 2.5) की मात्र में वृद्धि मृत्यु दर में वृद्धि से जुड़ा है। हर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर वायु में पीएम 2.5 की वृद्धि से मृत्यु दर में 8.6 प्रतिशत की वृद्धि होती है। लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर वार्षकि औसत से अधिक पीएम 2.5 प्रदूषण सांद्रता के लंबे समय तक संपर्क में रहने से भारत में प्रति वर्ष लगभग 1.5 मिलियन (15 लाख) मौतें होती हैं। निष्कर्षों से पता चला है कि भारत में 1.4 बिलियन लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं, जहां पीएम 2.5 सांद्रता विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों द्वारा अनुशंसित सांद्रता से अधिक है। अशोका यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर हेल्थ एनालिटिक्स रिसर्च एंड ट्रेंड्स (सीएचएआरटी) की डॉक्टरेट शोधकर्ता सुगंती जगनाथन ने कहा, ‘भारत में प्रतिवर्ष पीएम 2.5 के उच्च स्तर देखे जाते हैं, जिससे मृत्यु दर में भारी वृद्धि होती है, जो लक्षणात्मक दृष्टिकोण के बजाय व्यवस्थित दृष्टिकोण की आवश्यकता का संकेत देता है। अध्ययन में पाया गया कि वायु प्रदूषण के निम्न स्तर पर भी जोखिम अधिक है। यह देश भर में वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने की आवश्यकता को इंगित करता है। पिछले अध्ययनों के विपरीत इस अध्ययन में भारत के लिए निर्मित एक उत्कृष्ट स्थानिक-समय मॉडल से पीएम 2.5 एक्सपोजर और भारत के सभी जिलों में दर्ज वार्षिक मृत्यु दर का उपयोग किया गया।

दिल्ली को भले ही सुर्खियां मिलें, लेकिन यह समस्या पूरे भारत में है : श्वाट्र्ज
अध्ययन अवधि (2009 से 2019) के दौरान सभी मौतों में से 25 प्रतिशत (प्रति वर्ष लगभग 1.5 मिलियन मौतें) डब्ल्यूएचओ दिशानिर्देश की तुलना में उच्च वार्षकि पीएम 2.5 जोखिम के कारण हुईं। लगभग 0.3 मिलियन वार्षिक मौतें भारतीय राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (एनएएक्यूएस) से ऊपर पीएम 2.5 के वार्षिक एक्सपोजर के कारण भी होती हैं। एक्सपोजर प्रतिक्रिया कार्य से पता चला कि कम पीएम 2.5 सांद्रता पर मृत्यु दर का जोखिम अधिक होता है तथा उच्च पीएम 2.5 सांद्रता पर यह जोखिम स्थिर हो जाता है। हार्वर्ड टी.एच. चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के प्रोफेसर और चेयर-इंडिया कंसोर्टयिम के लिए अमेरिका से आए प्रमुख अन्वेषक जोएल श्वाट्र्ज ने कहा, ’दिल्ली को भले ही सुर्खियां मिलें, लेकिन यह समस्या पूरे भारत में है और इसके लिए पूरे देश में प्रयास किए जाने चाहिए। कोयला जलाने वाले बिजली संयंत्रों को स्क्रबर की जरूरत है, फसल जलाने को सीमित किया जाना चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें आबादी के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए तत्काल उपाय करने की जरूरत है।’

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