हिंदू धर्म के अनुयायी देश-विदेश में जहां कहीं भी रहते हैं पंडित श्रद्धा राम फिल्लौरी जी द्वारा रचित आरती ऊँ जय जगदीश हरे’ का गायन अपार श्रद्धा के साथ किया जाता है। उत्तरी भारत में महाकवि तुलसी दास जी द्वारा रचित ‘रामचरित मानस’ के बाद पंडित जी द्वारा रचित आरती सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुई है। इस महा आरती की धुन उन्होंने स्वयं तैयार की थी जिसके आधारभूत स्वर आज भी आरती में मौजूद हैं। वह एक बहुत महान संगीतकार थे। उनका जन्म 30 सितंबर, 1837 को पंजाब के ऐतिहासिक शहर फिल्लौर के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनकी शादी महताब कौर जी के साथ हुई थी। इन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा महान शिक्षाविद् एवं वेदांत वेत्ता पंडित राम चंद्र जी से प्राप्त की।
इन्होंने गुरमुखी लिपि का ज्ञान सात वर्ष की आयु में ही प्राप्त कर लिया था और 10 वर्ष की आयु में हिंदी, संस्कृत, फारसी, अंग्रेज़ी, ज्योतिष एवं संगीत के ज्ञान में निपुणता प्राप्त कर ली। उसके पश्चात् पंडित जी हिंदू धर्म के प्रचारक और महान ज्योतिषाचार्य के तौर पर प्रसिद्ध हुए। जब वह महाभारत की कथा करते थे तो श्रोता सुध-बुध खोकर भक्ति भाव में लीन हो जाते थे। उनके अनुयायियों की भारी भीड़ एकत्रित होने के कारण अंग्रेज़ सरकार ने उन पर सरकार के खिलाफ षड्यंत्र करने का आरोप लगाया। पंडित जी कुछ समय तक पटियाला रियासत में भी रहे।
हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा उनके उपन्यास ‘भाग्यवती’ के लिए उन्हें पहला उपन्यासकार घोषित किया गया। इन्होंने विधवा विवाह का समर्थन, बाल-विवाह और नवजन्मी के माध्यम से उन्होंने समाज को एक नई दिशा दिखाने का प्रयास किया। भारत में धर्मपरिवर्तन को रोकने के लिए आपने बहुत से कदम उठाए। इनके द्वारा रचित ‘पंजाबी बातचीत’ नामक पुस्तिका को अंग्रेज़ों ने अपने प्रशासनिक अधिकारियों को पंजाबी का ज्ञान देने के लिए प्रयोग किया। पंजाब में नौकरी प्राप्ति के समय भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों को पंजाबी बातचीत की परीक्षा देनी पड़ती थी, जो इसी पुस्तक के आधार पर होती थी।
पहले यह पुस्तिका गुरुमुखी में लिखी गई थी जिसके पश्चात् उसका रोमन में लिप्यांतरण किया गया। इसको पंजाबी शब्दकोष के तौर पर भी पढ़ा जाता रहा है। ‘सिखों के राज की विथिया’ एवं ‘पंजाबी बातचीत’ पुस्तकों को गुरुमुखी में लिखने के लिए पंडित जी को आधुनिक पंजाबी के गद्य लेखन के पितामह के रूप में जाना जाने लगा।
आपने वेद, उपनिषद्, पुराण, महाभारत, रामायण और श्रीमद् भागवत गीता के सारांश को सहज और सरल भाषा में उत्तर भारतीय लोगों तक पहुंचाया। आपने फिल्लौर में अपने जन्म स्थल पर ज्ञान मंदिर की स्थापना की और लाहौर में एक ज्ञान मंदिर की स्थापना की। आपका जीवन सम्पूर्ण मानवजाति के लिए ज्ञान स्रोत एवं प्रेरणा स्रोत है। आप 24 जून, 1881 को लाहौर में प्रभु के चरणों में विलीन हो गए।
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